पुंडलिक महाराज
पुंडलिक महाराज
महाराष्ट्र प्रदेश के सोलापुर के भीमा नदी के पंढरपुर से एक युवक जिसका नाम पुंडलिक था,। अपने बुजुर्ग माता पिता को छोड़कर वह काशी की यात्रा पर निकल पड़ा था, जब वो जंगल से निकल रहा था, तब वो रास्ता भटक गया, भटके हुये रास्ते पर उसे एक आश्रम दिखा। वो आश्रम था कुक्कुट ऋषि का। आश्रम पहुँचकर पुंडलिक ने महर्षि कुक्कुट को प्रणाम कर उन से काशी जाने का रास्ता पूछा। तब ऋषि ने बताया कि वे आजतक कभी भी काशी नही गए और इसी कारण उन्हैंं रास्ता भी पता नही है। पुंडलिक ने ये सुनते ही ऋषि का उपहास किया और कहा, "किस तरह के ऋषि हो आप ?, जो अपने आप को ऋषि समझते हो और एक बार भी काशी नहीं गए।" कुक्कुट ऋषि ने कुछ उत्तर नही दिया, उनका उपहास कर पुंडलिक आगे अपनी यात्रा के लिए निकल पड़ा।
पुंडलिक आश्रम से थोड़ी ही दूर गया था की उसे कुछ स्त्रियों की आवाज सुनाई देने लगी। उसने देखा की आवाज कहा से आ रही है। इधर उधर देखने के बाद पता चला की आवाज तो आश्रम से ही आ रही हैं, परन्तु आश्रम में तो कोई स्त्री दिखाई नहीं दी थी। वो विस्मय से फिर आश्रम की तरफ चल दिया।
जब वो आश्रम पहुँचा तो उसने पाया की तीन औरतें पानी से आश्रम को साफ कर रही हैं। जब उसने उनसे पूछा तो उसे पता चला की वो तीनों औरतें माँ गंगा, माता सरस्वती और माँ यमुना हैं। पुंडलिक आश्चर्य से दंग रह गया। कैसे ये तीनों उस ऋषि के आश्रम की पवित्रता बनाये हुए हैं जिसे काशी के दर्शन तो छोड़िए, काशी का मार्ग तक पता नहीं हैं। तब माँ गंगा, यमुना और सरस्वती ने उसे बताया की "पवित्रता और श्रद्धा तो मन में होती है ये जरुरी नहीं है की आप पवित्र स्थलों की यात्रा करें या फिर कर्मकांड करें। कुक्कुट ऋषि ने अपने जीवन में पवित्र मन से अपने माँ-बाप की सेवा की हैं, और इसी कारण उन्होंने इतना पुण्य अर्जित किया हैं कि वे मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।" पुंडलिक अपने बूढ़े माँ-बाप को छोड़ काशी निकला था, इस बात से उसकी आँखें खुल गयी, और वो वापस घर पहुँचा और अपने माँ और पिता को लेकर उसने काशी की यात्रा की।
इस घटना के बाद, पुंडलिक का जैसे जीवन ही बदल गया था। अब उसका जीवन अपने माँ-बाप की सेवा में चला जाता था। पुंडलिक जी कब पुण्डलिक महाराज बन गए उन्हें भी पता नही चला ,उनकी मातृ-पितृ भक्ति इतनी असीम थी की, एक बार भगवान कृष्ण को भी पुंडलिक महाराज के घर जाने का मोह हो आया। भगवान कृष्ण जब पुंडलिक महाराज के घर पहुँचे तो पुंडलिक महाराज अपने माता-पिता की सेवा कर रहा था। अपने घर मेहमान बन कर भगवान को आया देखकर उसे काफी खुशी हुई, पर उसका मन थोड़ा भी विचलित नहीं हुआ। उसने अपने पास पड़ी एक ईट को भगवान को खड़े रहने के लिए दी, और उन्हें रूकने के लिये कहा। इसके बाद वह फिर अपने माता पिता कि सेवा मे लीन हो गया। भगवान ने खड़े-खड़े थक गये और अपनी कमर पर दोनों हाथ रख लिये। ऐसा पहली बार था जब भगवान् को दर्शन देने के लिये भक्त का इन्तजार करना पड़ रहा था।
माता-पिता की सेवा होने के बाद पुंडलिक महाराज भगवान कृष्ण के सामने गया और उनसे क्षमा मांगी, भगवन कृष्ण उनकी मातृ-पितृभक्ति को देख काफी प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने के लिए कहा।
पुंडलिक ने कहा "भगवान् मेरे लिए इंतजार करते रहे, इस से ज्यादा क्या हो सकता है।" पर भगवन कृष्ण ने आग्रह किया, तो पुंडलिक बोले कि " विठोबा आप पृथ्वी पर निवास करें, और यही रहकर अपने भक्तों पर अपनी छाया बनाये रखें।" तब से भगवन कृष्ण उसी ईट पर पंढरपुर क्षेत्र में खड़े हैं विठोबा शब्द का अर्थ भी यही होता हैं "भगवन जो ईट पर खड़े हैं।"
भगवान श्री कृष्ण वहीं पर विट्ठल के रूप में स्थापित हो गए,।
पंढरपुर में स्थित भगवन विठ्ठल की मूर्ति स्वयंभू हैं यानि इसे किसी भी मूर्तिकार ने नहीं तराशा हुआ, और वो अपने अस्तित्व में ही उसी आकार में आई है।