Madhu Gupta "अपराजिता"

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Madhu Gupta "अपराजिता"

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चीख़

चीख़

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सुना है चीख़ो की ध्वनि को कभी क्या...?

बताओं सुना है कभी रुंदन करती है 

कभी उन्माद मचाती हैं 

तो कभी हृदय के दर्द को बाहर निकलाती चीख़ को। 

नहीं होती चीख़ें एक जैसी 

उनमें भी तरह-तरह की अपेक्षाएं आकांक्षाएं छुपी रहती है 

कभी किसी को पाने की अभिलाषा में चीख़ उठती है 

तो कभी किसी को खो देने के डर से चिंघाड़ उठती है चीखें।


चीखना उद्दंडता नहीं है, 

चीखने की प्रक्रिया में प्रवेश करके देखो, 

चीख़ की क्या पीड़ा है उसे महसूस करके देखो 

साधारण व्यक्ति नहीं चीख़ सकता क्योंकि वह डरता है, लोग क्या कहेंगे...?? 


चीख़ने के लिये हिम्मत और साहस की ज़रूरत होती है 

जो हर किसी के पास नहीं होती,

अपनी बहुत सारी अच्छाइयों का नकाब हटा असहज होना पड़ता है, खुद से लड़ना पड़ता है, 

खुद को दुसरो के विपरीत बनाना पड़ता है, 

तब कोई व्यक्ति चीखने की हिम्मत जुटा पाता है, 

चीखने की प्रक्रिया में उतरते वक़्त हमें उपहास सहना पड़ता ,

तब जाकर कोई चीख़ निकाल पाता है हर कोई नहीं।


लोग सोचते हैं कि व्यक्ति अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए ऐसा करता है 

लेकिनकुछ हद तक यह सच नहीं होता,

चीख़ खुद दर्द से भरी होती है 

जो खामोशी को तोड़ती है...... 

तब जाकर गला फाड़ कर बाहर निकलती है 

खुद को जहरीला बनाती है तब वह खुद के अंदर चीख के प्राण डालती है, तब एक चीख़,चीख़ बन कर के बाहर निकलती है।


हर व्यक्ति की चाहत रहती है मैं सौम्य सुशील और दया करुणा से ओत प्रोत रहूँ, 

मेरी छवि हमेशा एक जेंटलमैन की या वूमेन की रहे और तब वो अपना सारा प्रयास और जोर अपने छवि बनाने में निकालता और वह हमेशा यही चाहता है कि अच्छाइयों का नकाब कभी ना मेरे चेहरे से हटे पर कहीं ना कहीं उसके अंदर यह कश्मकश चलती रहती है कि मैं अपना दर्द कैसे बाहर निकलूं क्या करूं किस तरह से अपने आप को शांत करूं और वही शांत करने की प्रकिया कहीं ना कहीं चीख़ मैं तब्दील हो जाती है।


लेकिन लोग तो यही समझते हैं की बहुत ही शॉर्टटेंपर्ड व्यक्ति है कि अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए चीख़ का सहारा ले रहा है खुद को संभालने की इसमें अंदर जरा भी समर्थतता नहीं है , पर उसकी बेबसी उसकी लाचारी उसके अंदर पनपता दर्द पीड़ा का सागर जो उथल-पुथल और तूफान मचाए हुए था उसका क्या...?? 


चीख़ कमजोरी नहीं है चीख़ ऐसा दर्द भरा एहसास है जो सारे दर्द को इकट्ठा करके गले से फाड़ता हुआ बाहर निकालता है लेकिन हम समझने में यहीं गलती करते है कि वह कमजोर है, पर वह कई टुकड़ों में टूट गया है अपने दर्द से पीड़ा से इसलिए वह अपनी घुटन को बाहर निकलने का यह रास्ता चुन लेता है जिसे शायद कोई समझ नहीं पता पर वो चीख़ समझ जाती है।


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