Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy

सदमा(

सदमा(

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सदमा एक ऐसी बीमारी हैं जिमें व्यक्ति ख़ुद का नहीं रहता सुख दुख का अनुभव जहाँ समाप्त हो जाता है होठ तो होते है पर मुस्काना भूल जाता है  दिल तो धड़कता है पर सारी की सारी भावनाएं मिट जाती है हर जगह उपस्थित होते हुए भी वो कही भी नहीं होता हैअब सवाल यह उठता है ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न होती है एक हंसता खेलता व्यक्ति इस परिस्थिति का शिकार क्यों हो जाता है और हम कुछ भी नहीं कर पाते, रंगों से भरी दुनिया क्यों बेरंग सी महसूस हो ने लगती है। कौन सी ऐसी चोट मिलती है जहाँ जीने की रुचि समाप्त हो जाती है। 

सदमा एक तरह का नहीं होता है कभी यह अपनों को खो देने से तो कभी किसी के दूर जाने से कभी धोख़ा खाने से तो कभी अपनी कोई अज़ीज अभिलाषा के ना पूरा होने पर व्यक्ति सदमें में चला जाता है।

और कभी कभी कठिनाइयों से जूझता हुआ वो उस स्थिति में पहुँच जाता है जहाँ उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ हार नज़र आती है और तब वो परिस्थितियां उसे सदमे में धकेल देती है वो संसार में रहते हुए भी अजनवी बन कर रह जाता है। 

एक टूटन एक निराशा एक दर्द उसके साथी हो जाते है जिसे ना तो वो एक्सप्लेन कर पाता है और ना ही उससे बाहर आने की स्थिति में रहता है।

जमाने का ऐसा दर्द जमाने की ऐसी पीड़ा जमाने भर के ऐसे अनुभव व्यक्ति को अंदर से तोड़ मरोड़ कर एकांकी कर जाते हैं की जिंदगी मौत से भी बत्तर बनकर रह जाती है। 

व्यक्ति क्यों अपने आप को परिस्थितियों के अधीन कर लेता है कि उसे उसका बाहर निकलना ही मुश्किल सा हो जाता है। 

कैसे निकाला जाए उस व्यक्ति को जो सदमा से ग्रस्त हो चुका है जिसको ना तो अपनी सुध बुध रही है और ना ही जीने का उत्साह बाकी बचा है किस तरह से उसके अंदर खुशियों का संचार किया जाए ताकि वह जीने के लिए फिर से एक बार प्रेरित हो सके। 

सदमा से ग्रस्त व्यक्ति को अपनों का प्यार अपनों का साथ अपनों का दुलार फिर से वापस दुनिया में ला सकता है हर उस व्यक्ति का उसके प्रति फर्ज़ बनता है जो उससे जुड़ा हुआ कि उसकी हर छोटी बड़ी बातों में उसका साथ दे उसको हँसाने का उसके साथ वक़्त बिताने का उसके अंदर बैठे दर्द और पीड़ा को बाहर निकालने का उपाए ढूंढ उसके अंदर पलती बेबसी को प्यार में बदलने का एक भी मौका नहीं छोड़ना चाहिए छोटी-छोटी चीजों में उसे प्यार से सहारा देना चाहिए। 

परिवार और दोस्त ही सबसे बड़ा संभल होते हैं ऐसे व्यक्ति को वापस उसका हौसला बढ़ाने में। कभी-कभी व्यक्ति जाने अनजाने गलतियां भी कर बैठता है जिसका उसको बाद में अफसोस होता है और वह तब भी बिखर और टूट कर उस स्थिति पहुंच जाता है जहां उसे लगता है कि मैं यह क्या कर बैठा अब इसका मेरे व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ेगा लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे इस तरह की बातें उसके दिल और दिमाग़ में उथल-पुथल मचाती रहती है और फिर वह समाज से कटने लगता है और अकेला जीवन व्यतीत करने लगता है जो उसको सदमा की ओर ले जाता है। 

उस वक्त परिवार ही एक ऐसी धूरी होती है जो उसे व्यक्ति को संभाल कर उसके कार्यों को नज़र अंदाज कर अपने हृदय से लगाकर उसकी सारी कुंठा को बाहर निकाल कर उसे फिर से समाज के परिवेश में प्रवेश करने के लिए फ़िर से उत्साहित कर सकता है। 


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