Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy Others

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy Others

'इकी'

'इकी'

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आज मन बहुत उदास है ऐसा लग रहा है दिल से कोई चीज़ निकाल कर ले गया आंखों से आंसू निकल रहे हैं, मन कचोट रहा है अपने आप पे, जरा सी असावधानी से छोटी सी जान किसी के मुंह में कैद हो कर रह गई.......

मैं बताऊंगी तो लोग थोड़ा हंसेंगे फिर भी मेरे लिए बहुत दर्द भरी बात है। अगर मैंने ध्यान दिया होता तो आज मैं उसे बचा लेती मेरी जरा सी लापरवाही से उसकी जान चली गई भले ही वो इंसानों में शुमार ना हो पर मेरी वह साथी सी बन गई थी....!!


आज से तीन या चार महीने पहले उसने मेरे घर में दस्तक दी थी, वह अपने नन्हे नन्हे पैरों से मेरे घर में घुस आई थी और आकर किसी कोने में छिप बैठी थी, वह कोई और नहीं एक छोटी सी चुहिया थी जो पूरे घर में फुदकती और इधर से उधर मचलती रहती थी। 

जब घर में कोई नहीं होता तब वह अपने नन्हे नन्हे पैरों से बाहर निकल कर कभी इस कमरे में तो कभी उसे कमरे में कभी रसोई में पहुंच जाती, तो कभी-कभी मुझे लगता वह मेरे पीछे-पीछे चल रही है और मैं जैसे ही पीछे मुड़कर देखती हूं तब दौड़ लगाती और किसी कोने में जाकर छिप कर बैठ जाती, जब मैं पूजा रूम में जाकर एक स्टूल पर बैठती और पूजा करने के लिए आंखें बंद करती वह पता नहीं कहां से निकल आती और मेरे मुंडे के आसपास चक्कर लगाती, मुझे ऐसा लगता जैसे वह मेरी निगरानी कर रही हो और मैं जैसे ही आंखें खोलती वो झट से भाग जाती.............

उसे देखकर बड़ा अच्छा लगता ऐसा लगता था कि वह अपनी सारी बातें मुझे बता रही है और मैं उसे कभी वह उसे कोने में छुप जाती थी कभी वह दरवाजे के पीछे तो कभी वह अलमारी के पीछे......... 

जब घर में कोई नहीं होता था और मैं जा कर बैड पे लेट जाती तब वह धीरे-धीरे बाहर निकलती थी और कभी मेरी बैंड पर आकर इधर से उधर घूमती रहती फिर धीरे-धीरे मेरे पास आने लगी मैं उसे छोटे-छोटे टुकड़े रोटी के तो कुछ खाने की चीज़ें प्लेट में रख देती तो वह धीरे धीरे कुतुर कुतुर के खाती रहती ऐसा करते करते वह धीरे से मेरी उंगली पर चढ़ने की कोशिश करती और जैसे ही हाथ में हरकत होती तो झट से भाग जाती हैं।


फ़िर मैंने उसके लिए एक नाम सोच लिया 'इकी'...... 

जब सब लोग घर से चले जाते तब मैं उसे आवाज़ लगाती 'इकी' तुम बाहर आ जाओ देखो ना अब घर पर कोई नहीं है.....तब मैं जाकर उसे कमरे में ढूँढने लगती तो वह किसी दरवाज़े के पीछे या किसी अलमारी के या फ़िर किसी पर्दे के ऊपर चलती मिलती और जैसे ही मेरी आहट को सुनती वहाँ से झट निकल भागती शायद मुझसे खौफ़ खाती कि कहीं मैं उसे नुकसान ना पहुँचा दूँ। बैंड के नीचे वो ज्यादा रहती थी अपने दांतों से बैंड को कुरेदती रहती उसकी यह आवाज़ मेरे कानों में मिठास घोलती रहती थी। फिर धीरे-धीरे वह मेरी आवाज़ को समझने सी लगी जब मैं उसको आवाज लगाती तो वो बाहर आ कर जहाँ भी मैं बैठी होती वहाँ आकर चक्कर लगाने लगती यह देख कर मुझको बड़ा अच्छा सा लगने लगा वह ऐसे हिल मिल गई जैसे इस घर की वह भी एक सदस्य हो गई हो। 

जब कभी भी उसको भूख लगती वो मेरे पास आ कर जोर जोर से आवाज़ें निकालने लगती और जब तक मैं उसे खाने को ना देती उसकी आवाज़ लगातार बजती रहती।

उसका होना मुझे किसी बच्चे से कम ना लगता मैं और वो एक ऐसे रिश्ते में जुड़ गए जो शब्दों से तो जाहिर नहीं हो सकता सिर्फ़ और सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है।

और जो व्यक्ति इस भावना में गोता खायेगा वही इस भावना से जुड़ पायेंगे। 

आज 4/4/2023 को जब घर पे मैं अकेली थी और ड्राइंग रूम में बैठे पेपर पढ़ रही थी पति और बेटा बहार खरीदारी करने मार्केट गये हुए थे लगभग 11 बजे का समय था मेड भी काम कर के जा चुकी थी......बालकनी के दरवाजे खुले हुए थे कि तभी एक बिल्ली घर पे आ गई मैं उस वक़्त उसे देख कर खुश हो गई सोचने लगी बहुत दिनों के बाद आई है सो घूम लेने दो चूंकि मुझे जानवरों से बहुत लगाव है मैं उससे बाते करने लगी बाते करते करते मैं अखबार भी पढ़ रही थी तभी मेरी नज़र उससे हट गई वो इतनी ही देर में अंदर रूम में चली गई

मैं निश्चित थी कि वह घूम रही होगी पर कुछ ही मिनट बाद वो बाहर निकल कर आई उसे देख कर मैं आवाक रह गई उसके मुँह में चुहिया दबी हुई थी उस वक्त मेरा मुंह खुला का खुला रह गया और शब्द अंदर ही सिमटे रह गए बस आंखों से आंसू टपकते रहे बहुत देर तक........वह बिल्ली उस छोटी मासूम सी चुहिया को मुंह में दबाकर चलती बनी। मैं फिर से अकेली उदास बैठी उसके लिए आंसू बहती और निःशब्द बनी कुछ ना कर पाई के मलाल में तड़पती रही।



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