एन सी सी के वो जोश भरे दिन
एन सी सी के वो जोश भरे दिन
बड़ी ही अनोखी कहानी है यह जब मैं सेवंथ क्लास में थी मैं एनसीसी में अपना नामांकन करा चुकी थी । जब भी 15 अगस्त या 26 जनवरी आने वाला होता था तो मन लगभग 1 सप्ताह पहले से ही प्रफुल्लित हो जाता था ऐसे तो सुबह जगना बिल्कुल ही अच्छा नहीं लगता था लेकिन एनसीसी के परेड के लिए जब हम लोगों को बुलाया जाता था तो सुबह 3:00 बजे ही नींद खुल जाती थी और जाने के लिए मन बेचैन हो उठता था । सुबह-सुबह चुपके-चुपके उठकर मुंह हाथ धोकर रेडी हो जाती थी लेकिन घर के लोग सोए रहते थे जब उन्हें सुनाई देता था कि कोई जगा हुआ है तब वह पूछते थे कि क्या हो रहा है अभी कौन जगा है इस तरह 15 दिन पहले से ही हमारी प्रैक्टिस होती थी।
15 अगस्त या 26 जनवरी को जब पोलो मैदान में परेड केलिये हमें शामिल होना होता था उस दिन की बात ही अनोखी होती थी । सबसे अच्छा तो तब लगता था जब हम झुंड में सड़क पर एनसीसी ड्रेस में निकलते थे ऐसा महसूस होने लगता था कि हम देश की रक्षा करने जा रहे हैं ,देश के लिए कोई लड़ाई लड़ने जा रहे हैं । जब हम लोगों को अगल-बगल के आसपास के लोग देखते थे तब जोश और और भी भर जाता था । वह वर्दी पहनना मोटे-मोटे जूते और एनसीसी कैप यह सब लगाकर बिल्कुल लगता था कि हम लोग तैयारी करके किसी जंग में जा रहे हैं । देश की रक्षा करने जा रहे हैं । पोलो मैदान में पहुंचकर जब हमारी लाइन लगाई जाती थी तो जोश मे भर जाती थी।
वहां जब दर्शक आते थे और सभी दर्शक हम लोगों को देखते हुए होते थे तो काफी अच्छा लगता था । जब चीफ गेस्ट आते थे और सलामी लेते थे तब हम सब भी बड़े जोश में सलामी देते थे सबसे अच्छा तो परेड करना लगता था जब हम चलते हुए स्टेज के सामने से गुजरते थे और ''परेड दाहिने देख'' कहा जाता था तो जोश और भी भर जाता था और उस ड्रम के आवाज पर कदम से कदम मिला कर आगे बढ़ना जैसे डीसिप्लीन का परम चरण होता था।
सचमुच काश वो वक्त पुन: जीवन मे आ जाये तो कितना अच्छा होता। उस वक्त के जोश ने देश की रक्षा के लिये सिपाही बनने के सपने दिखा दिये पर नियति को ये मंजूर नहीं था और आज मैं एक शिक्षिका बन गई पर आज भी बच्चों में देश के लिये वही जोश भरने की कोशिश करती हूँ।