झूठ का असर
झूठ का असर
एक बार की बात है, रामपुर गांव के एक आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके पड़ोस में रहने वाला नौजवान चोर है। वह हमेशा चोरियां करता रहता है।
वह आदमी हमेशा लोगो के बारे में ऐसी ही अफवाह फैलाते रहता था।
यह बात दूर-दूर के गांवों तक फैल गई। आस-पास के लोग उस नौजवान से बचने लगे। नौजवान परेशान हो गया, कोई उस पर विश्वास ही नहीं करता था।
तभी गाँव में एक चोरी की एक वारदात हुई और शक उस नौजवान पर गया, फिर उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
लेकिन कुछ दिनों के बाद सबूत के अभाव में वह निर्दोष साबित हो गया, निर्दोष साबित होने के बाद वह नौजवान चुप नहीं बैठा। उसने उस आदमी पर गलत आरोप लगाने के लिए पंचायत में शिकायत दर्ज कर दिया।
पंचायत में उस आदमी ने अपने बचाव में सरपंच से कहा*" मैंने जो कुछ कहा था, वह एक मजाक से अधिक कुछ नहीं था। किसी को नुकसान पहुंचाना मेरा इरादा नहीं था।
गांव के सरपंच ने उस आदमी से कहा*" आप एक कागज के टुकड़े पर वो सब बातें लिखें, जो आपने उस नौजवान के बारे में कहीं थीं और जाते समय उस कागज के टुकड़े-टुकड़े करके घर के रस्ते पर फ़ेंक दो, कल फैसला सुनने के लिए आ जाएँ...।
उस आदमी ने वैसा ही किया।
उसके अगले दिन सरपंच ने उस आदमी से कहा कि *"फैसला सुनने से पहले आप बाहर जाएँ और उन कागज के टुकड़ों को.. जो आपने कल बाहर फ़ेंक दिए थे, इकट्ठा कर ले आएं।
उस आदमी ने कहा*" मैं ऐसा नहीं कर सकता। उन कागज के टुकड़ों को तो हवा कहीं से कहीं उड़ा कर ले गई होगी। अब वे नहीं मिल पाएंगे। मैं कहाँ-कहाँ उन्हें ढूंढने के लिए जाऊंगा?
गांव के सरपंच ने कहा*"" ठीक इसी प्रकार, एक सरल-सी टिप्पणी भी किसी का मान-सम्मान उस सीमा तक नष्ट कर सकती है... जिससे वह व्यक्ति किसी भी दशा में दोबारा उस सम्मान को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो सकता।
इसी लिए कहते हैं, यदि आप किसी के बारे में कुछ अच्छा नहीं कह सकते, तो चुप रहें। उसके बारे में बुरा न कहे,झूठ का असर लोगो पर अधिक पड़ता है, इसलिए वाणी पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए, ताकि हम शब्दों के दास न बने।