Rastr Dhiman

Romance

3  

Rastr Dhiman

Romance

खूबसूरत मोड़ ( क्रमशः)

खूबसूरत मोड़ ( क्रमशः)

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"उठो, खाना नहीं खाओगी क्या ? माँ की आवाज़ से मांडवी की आँख खुल गई। अधखुली आँखों से दीवार घड़ी की तरफ़ देखा। नौ बज रहे थे। 

पूरे दो घण्टे सो गई। मांडवी बाथरूम चली गई। हाथ / मुँह धो कर रसोई में माँ के पास चली आई। "मुझे उठाया क्यों नहीं माँ ? वो लाड़ से बोली। सारा काम अकेले कर लिया ? घुटने का दर्द बड़ जायेगा। 

"तू इतने प्यार से सो रही थी, कितनी मीठी मुस्कुराहट थी तेरे होंठों पर, मुझे सोलह साल वाली मांडवी याद आ गई, बस उठाने का मन नहीं किया। और रही बात काम की, तो बेटा तुझे और रवींद्र को पालने में कितनी मेहनत पड़ती थी। तुम दोनों लड़ते भी तो कितना थे। 

"पर तुम प्यार रवींद्र से ही ज़्यादा करती थी, मेरे हिस्से में तो डाँट ही आती थी। मांडवी ने बनावटी ग़ुस्से से बोला। 

"नहीं बेटा, ऐसे नहीं बोलो, तुम बड़ी हो न इसलिये थोड़ी ज़्यादा डाँट पड़ जाती थी। माँ की आँखों में दर्द था। 

"अरे मैं तो मज़ाक़ कर रही थी माँ, चलो तुम डाइनिंग टेबल पर बैठो, खाना मैं लगा देती हूँ। मांडवी को ख़ुद पर ग़ुस्सा आ रहा था कि क्यों माँ का दिल दुखा दिया ?

निर्मला डाइनिंग टेबल पर कुर्सी खींच कर बैठ गई। रवींद्र तो विदेश का हो कर रह गया, स्कूल से आने के बाद माँ / माँ करता आगे / पीछे घूमता रहता था। अब तो महीनों फ़ोन पर भी बात नहीं होती। “ख़ुश तो होगा "निर्मला ने गहरी साँस ली।

“यह लो माँ, खाना लग गया, मांडवी थाली निर्मला के सामने रखती हुई बोली। यह क्या ? तुम रो रही हो ?

"नहीं !! आँख में बाल चला गया था ” निर्मला आँख पोंछते हुए बोली। 

 मांडवी जानती थी, कि वह रवींद्र को याद करके रो रही है। "वाह क्या कोफ़्ते बनाये हैं, इसे कहते हैं माँ के हाथों का ज़ायक़ा, वाह। मांडवी ने चटखारा लिया।

"झूठी है तू बड़ी वाली, इतने अच्छे तो बने भी नहीं, ऐसे चटखारे ले रही है, मानो कोफ़्ते कभी खाए ही नहीं हों। निर्मला ने उसकी आँखों में झांका। 

तुम क्या जानो ? तुम्हारी माँ थोड़े बनायी है निम्मो रानी, मेरी माँ ने बनाए हैं। मांडवी हँसी। 

हंसती हुई मांडवी निर्मला को बहुत प्यारी लगी। पैंतीस साल की छोटी सी बच्ची। "एक बात बोलूँ, ऐसे ही ख़ुश रहा कर। इतनी सुन्दर हो, शादी कर लो बेटा, बहुत लम्बी ज़िन्दगी है बेटा, कैसे कटेगी अकेले ? निर्मला की आवाज़ में चिंता और प्यार दोनों थे।

“अकेले क्यों, माँ मेरे साथ है ना।” मांडवी बर्तन समेटते हुए बोली।

"मैं क्या अमृत पी के आई हूँ ?? बेटा बात को समझ, उम्र निकल जायेगी तो कोई नहीं मिलेगा। 

"रहने दो माँ, एक शादी करके देख लिया है, क्या मिला लड़ाई / पिटाई के अलावा। मांडवी को ग़ुस्सा आने लगा।

” वो एक ऐक्सिडेंट था, सारे मर्द विमल की तरह नहीं होते, अच्छे लोग भी होते हैं, अपने पापा को ही ले लो, कितना ख़्याल रखते थे मेरा। निर्मला की आँखें सुनहरी यादों से चमक उठी। 

"पापा जैसे मर्द बनना बंद हो गए हैं, निम्मो रानी। मांडवी हँसते हुए बोली।

"नहीं बेटा, अच्छे लोग हर दौर में मिलते हैं। बस हम पहचान नहीं पाते। क्योंकि हम दिल की आवाज़ को सुनते नहीं, और दिमाग़ ज़रूरत से ज़्यादा लगाते हैं। निर्मला कुल्ला करते बोली। 

ठीक देवी माँ, चलो दवा ले लो। बाक़ी कल वार्तालाप करेंगे। 

"हर बात को मज़ाक़ में उड़ा देती हो, यह कोई अच्छी बात नहीं है। निर्मला ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। 

"ओके, गुड नाइट। मांडवी ने चद्दर तानते हुए बोला।

थोड़ी देर में निर्मला के खर्राटे कमरे में गूँजने लगे। पर मांडवी को नींद नहीं आ रही थी। एक तो दो घण्टे सो गई थी, दूसरे जय का चेहरा बार / बार आँखों के सामने आ रहा था। माँ ठीक ही कह रही है, सारे मर्द एक जैसे नहीं होते, जय कितना ख़्याल रखता है मेरा। मांडवी करवट बदल / बदल कर सोचती रही। मुझे दिल की आवाज़ सुननी चाहिए, जय के साथ कितना अच्छा लगता है। कोई डर नहीं उसके साथ, बस अच्छा ही अच्छा लगता है। पर क्या पता बाद में बदल जाए ? सोचते / सोचते मांडवी की आँख लग गई।।


{क्रमशः}


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