Shreeya Dhapola

Abstract

5.0  

Shreeya Dhapola

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कमरे

कमरे

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बस चार दीवारें है

कुछ कमरे है

जाने पहचाने अजनबी

रहते हैं उनमें

जो अपनी ही दुनिया में

गुम रहते हैं


तुम्हारी दुनिया का हिस्सा

हैं वो मगर ना जाने

किस दुनिया में खोए रहते हैं

ना सुबह और शाम की चाय पर चर्चा


ना एक साथ बैठकर हँसना खेलना

चेहरे पर तनाव की लकीरें रहती है

सुबह से शाम भी ना जाने कब हो जाती है


बात करते हैं बस तस्वीरों के लिए

और उन्हें अपलोड करके 

बस कॉमेंट्स में ही दिल का हाल खोलते हैं।


घर घर नहीं है अब

रंग और ढंग बदल से गए हैं।


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