सुनो मेरी उदासी
सुनो मेरी उदासी
यूं सुनके वापस अनसुना ना कर देना।
ये जो घाव वक़्त भरने लगता है ? तुम क्यूं दीमक की तरह उसे कुरेद कर वापस उन लम्हों की गमगीन यादें ताज़ा कर देती हो ?
बड़ी मुश्किल से ये दिल संभलता है और तुम वापस उसे उस मोड़ पर ले जाकर पहले की तरह ही खुद बर्बाद होने पर मजबूर कर देती हो। सुनो बड़ी मुश्किल से संभालना सीखा है
उन अंधेरे कमरों में रौशनी झांकती हुई दिखाई देती है अब।
बस इतनी सी दरख़्वास्त है, मैं भूलना चाहती हूं वो गुज़रे लम्हे। तो तुम भी अब उनसे निकलकर एक नई शुरुआत करो।