कविता
कविता
तेरी नूतन हँसी प्रिय !
-- शशिबिन्दु नारायण मिश्र
जब भी मिलना
ज़रूर मुस्कराना
प्रिय ! गरूर मत करना
तेरा माधुर्य खत्म हो जाएगा
तेरी गुरुता भी गरूर से
दिल में हौले-हौले उतर जाना
तेरा निश्छल हँसना
है तेरा गरु होना
तेरी हँसी में नूतनता
होती रमणीयता साकार
कायम रहे सदा ये अलंकार
मेरे लिए यह तेरी आकृति
बनाती तुम्हें साक्षात् प्रकृति
प्रकृतिस्थ तेरा हँसना
हृदय में पुष्प खिलना
ये अलंकार सदा कायम रखना
हृद्-सिंहासन पर विराजित रहना
और सुगंध बिखेरना
तेरी मीठी वाणी और उन्मुक्त हँसी
मेरे लिए है नित-नूतन रमणीय पुष्प खिलना
मुझे सुगंधित करना
तेरा नूतन प्रकृति हो जाना प्रिय !