Sunil Kumar

Inspirational

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मातृभाषा का महत्व

मातृभाषा का महत्व

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शहर के प्रसिद्ध उद्योगपति सूरजभान की इकलौती लाडली बिटिया कविता को बचपन से ही किसी चीज की कमी नहीं थी। अच्छा खाना-कपड़ा, अच्छे स्कूल में पढ़ाई-लिखाई सब सुविधाएं उसे सुलभ थी। जैसे हर मां-बाप का प्रयास होता है कि उनके बच्चों को किसी चीज की कमी न हो। कविता के मां-बाप ने भी उसकी परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। शहर के सबसे प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ने वाली कविता फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती थी। वैसे तो अभी वो कक्षा दस में पढ़ती थी लेकिन बड़ी कक्षाओं की किताबें भी पढ़ने का शौक रखती थी। उसमें बस एक ही कमी थी अपनी मातृभाषा हिंदी को अन्य विषयों से कमतर आंकना। कविता की इसी भूल ने उसका इतना बड़ा नुकसान कर दिया जिसकी भरपाई कभी हो नहीं सकती। हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा में मात्र कुछ ही दिन शेष बचे थे इसलिए कविता रात-दिन परीक्षा की तैयारी में जुटी थी। रोज दस से बारह घंटे पढ़ाई करती थी। वह अन्य विषयों की तैयारी पर तो पूरा ध्यान दे रही थी लेकिन हिंदी की तैयारी पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही थी। उसके दिमाग में एक बात घर कर गई थी की हिंदी तो हमारी बोलचाल की भाषा है इसमें क्या तैयारी करना लेकिन वह नहीं जानती थी कि उसकी यही सोच उसका कितना बड़ा नुकसान कर देगी। धीरे-धीरे समय बीतता गया और बोर्ड परीक्षा का समय भी आ गया। कविता पूर्ण मनोयोग से परीक्षा में शामिल हुई। उसे पूरा विश्वास था कि वह इस परीक्षा में विद्यालय के टॉप टेन विद्यार्थियों की सूची में अवश्य शामिल होगी।लेकिन जब बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट आया तो रिजल्ट देखकर कविता के होश उड़ गए।परीक्षा के अन्य विषयों में अस्सी प्रतिशत से भी अधिक अंक प्राप्त करने वाली कविता अपनी मातृभाषा हिंदी के प्रश्न पत्र में मात्र पासिंग मार्क अंक ही हासिल कर पाई थी।

विद्यालय के टॉप टेन विद्यार्थियों की सूची में शामिल होने का उसका सपना चकनाचूर हो गया।वह शोक के गहरे सागर में डूब गई और सोचने लगी काश मैंने शुरू से ही अपनी मातृभाषा के महत्व को समझा होता तो आज मैं भी विद्यालय के टॉप टेन विद्यार्थियों में शामिल होती।



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