हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Crime Fantasy Thriller

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Crime Fantasy Thriller

फॉर्म हाउस (भाग-14)

फॉर्म हाउस (भाग-14)

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हीरेन ने रिषिता का केस ले तो लिया था मगर उसे विश्वास था कि केस उसके पक्ष में नहीं है। जो सबूत अखबारों के माध्यम से जानने में आये थे, उनसे स्पष्ट लग रहा था कि खून रिषिता ने ही किया था। हीरेन को सबसे पहले रिषिता से मुलाकात कर वास्तविक स्थिति ज्ञात करनी थी उसके बाद वह इस केस की जांच कर सकता था। वह रिषिता से मिलने के लिए जेल में पहुंच गया। 

"हैलो रिषिता, कैसी हो ? मैं हीरेन जासूस तुम्हारा नया वकील"। हीरेन ने अपना परिचय देते हुए कहा। 

रिषिता बहुत हताश निराश लग रही थी। उसके चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई थी। आंखों में मौत का डर साफ साफ दिखाई दे रहा था। होठों पर पपड़ी पड़ी हुई थी। बाल सूखे हुए से बेजान से नजर आ रहे थे। चेहरा काला पड़ गया था। गाल पिचक गये थे और हड्डियां उभर आई थीं। 25 साल की एक लड़की 30-40 की लग रही थी। जब आदमी चारों तरफ से निराश हो जाता है तब वह एक जिन्दा लाश हो जाता है। रिषिता भी एक जिंदा लाश बनकर रह गई थी। 

एक फीकी हंसी के साथ स्वागत किया था रिषिता ने हीरेन का। हीरेन का नाम सुना था उसने पर उसे कभी देखा नहीं था। हीरेन के नाम में ही कुछ ऐसा जादू था कि उसकी आंखों में एक चमक आ गई। 

"क्या आप मेरा केस लडेंगे" ? उसने आश्चर्य से पूछा। उसे अभी भी अपनी आंख और कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। 

"हां सचमुच" हीरेन ने मुस्कुराकर उसे हिम्मत देने का प्रयास किया। 

"सच में आप मेरा केस लडेंगे" ? रिषिता को अभी भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसने हीरेन के हाथों को छूकर देखने की कोशिश की कि कहीं वह कोई सपना तो नहीं देख रही है। 

"मेरा विश्वास करो रिषिता, मैं सच में तुम्हारा केस लडूंगा"। हीरेन उसे विश्वास दिलाने का प्रयास करने लगा।

"क्या वाकई आप मेरा केस लड़ेंगे" ? कहते कहते वह फूट-फूटकर रोने लगी। जब चारों ओर से उम्मीद की कोई किरण दिखाई नहीं देती है और अचानक किसी के सामने प्रकाश पुंज प्रकट हो जाता है तो उसे उस पर विश्वास नहीं होता है। रिषिता का हाल भी वैसा ही हो रहा था। उसके रोने की आवाज सुनकर जेल के गार्ड दौड़कर वहां आ गये थे। 

"क्यों, क्या हुआ रिषिता ? क्यों रोने लगीं" ? हीरेन ने उससे पूछा। 

"सर मेरे पास आपकी फीस के लिए पैसे नहीं हैं। बिना फीस के आप मेरा केस कैसे लड़ेंगे ? यही सोचकर मुझे रोना आ गया था"। रिषिता सुबकते हुए बोली। 

"बस इतनी सी बात ! तुम मेरी फीस की चिंता मत करो। मेरी फीस मुझे एडवांस में मिल गई है। अब तो खुश हो" ? 

"सच ! किसने दी" ? उसकी आंखों में पहली बार हीरेन ने खुशी की किरन देखी थी। 

"वो कलकत्ता वाले आनंद बाबू हैं ना, उन्होंने दे दी। उन्होंने ही मुझे तुम्हारा केस लड़ने के लिए कहा था। क्या लगते हैं आपके आनंद बाबू" ? हीरेन उसे नॉर्मल करने के उद्देश्य से पूछने लगा। 

"वैसे तो वे कुछ नहीं लगते हैं पर वैसे वे बहुत कुछ लगते हैं"। नीची गर्दन कर के रिषिता बोली। 

रिषिता की बातें सुनकर हीरेन को जोर की हंसी आ गई। 

"तुम तो जासूसों की तरह बातें करती हो। आधी खुली आधी ढंकी। क्या तुम भी कोई जासूस हो ? खूब जमेगी जब मिल बैठेंगे दो जासूस"। हीरेन ठहाका लगाते हुए बोला। 

"नहीं सर, मैं कोई जासूस वासूस नहीं हूं। मैं तो एक साधारण सी लड़की हूं बस"। रिषिता शायद कुछ संकोच कर रही थी बताने में। 

"अच्छा ! एक साधारण सी लड़की के लिए कलकत्ता से आनंद बाबू यहां लखनऊ क्यों आयेंगे ? कोई तो बात होगी तुम में जो तुम्हारे लिए उन्हें यहां खींच लाई ? हां, अगर तुम नहीं बताना चाहती हो तो मत बताओ, मैं फोर्स नहीं करूंगा"। हीरेन धीरे से बोला। 

"नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है। आज मुझे अपनी गलती का अहसास हो रहा है"। रिषिता थोड़ा शरमाते हुए बोली। उसके रूखे गालों पर हलकी सी गुलाबी छा गई थी। 

"गलती ! कैसी गलती ? क्या राज मल्होत्रा आनंद बाबू का कोई रिश्तेदार था जो आज तुम्हें उसे मारने की गलती का अहसास हो रहा है"। हीरेन ने जानबूझकर राज मल्होत्रा का आनंद बाबू से रिश्ता जोड़ दिया था जिससे रिषिता सही बात बता सके। 

"वो मुझे मालूम नहीं है सर। यदि आनंद बाबू का राज मल्होत्रा से कोई संबंध होता तो आनंद बाबू मुझे बचाने के लिए आपसे क्यों मिलते और आपकी फीस क्यों देते" ? 

"तो फिर क्या बात है" ? 

"बात यह है सर कि उनका एक बेटा है चिन्मय कुमार। वह मेरे साथ कॉलेज में पढता था। हम दोनों अच्छे दोस्त थे। मेरे प्रति चिन्मय के मन में कुछ और भी है, यह मुझे पता नहीं था। मेरा एक और दोस्त था लकी। मैं लकी से प्यार करने लगी थी। ये बात चिन्मय को पता नहीं थी और चिन्मय मुझे चाहता था, यह बात मुझे पता नहीं थी। 

एक दिन चिन्मय ने मेरे जन्म दिन पर मुझे एक किताब दी थी। मैंने वह किताब लेकर अपनी शेल्फ में रख दी थी। एक दिन मैं और लकी एक पार्क में बैठे हुए थे। मैं लकी की बांहों में थी। तब अचानक चिन्मय वहां आ गया और उसने हम दोनों को उस हालत में देख लिया। उसके बाद से उसने मुझसे कभी बात नहीं की थी। तब मैंने घर आकर वह किताब देखी थी । उसमें चिन्मय का एक पत्र था। तब मुझे पता चला कि चिन्मय भी मुझसे प्रेम करता है। मेरा लकी के साथ संबंध चिन्मय को शायद पसंद नहीं आया। लेकिन चिन्मय मुझे आज तक भुला नहीं पाया है। इसीलिए उसने आनंद बाबू को मेरा केस लड़ने को आपको देने के लिए फोर्स किया होगा"। 

कहते कहते रिषिता का स्वर भीग गया था। उसे चिन्मय के सच्चे प्रेम के दर्शन हो गये थे। उसने चिन्मय के प्रेम को तब पहचाना नहीं था। काश वह चिन्मय को समझ पाती। 

"यदि तुम और लकी दोनों प्रेम करते थे तो फिर ये राज मल्होत्रा बीच में कैसे आ गया" ? रिषिता को नॉर्मल देखकर अब हीरेन ने अपना काम शुरू कर दिया। 

"लकी एक अच्छा गायक कलाकार था। वह हैंडसम और स्मार्ट भी था। उसके चारों ओर लड़कियां मंडराती रहती थीं। पर लकी ने मुझे पसंद किया था। बस, मुझे इसी बात का घमंड था कि लकी मुझसे प्यार करता है। इसीलिए मैं एक अलग ही तरन्नुम में उड़ती रहती थी। ना पढाई और ना ही घर की चिंता। बस, हरदम प्यार के तराने रहते थे हम दोनों के बीच में। 

एक दिन मालूम चला कि लकी कहीं चला गया है। उसके बाद से वह आज तक नहीं लौटा है। उसके इस तरह से बिना बताये चले जाने से मैं टूट गई थी। उसके बाद उसने कभी कोई फोन नहीं किया। वह कहां है, क्या करता है, कुछ पता नहीं है मुझे"। रिषिता सांस लेने के लिए रुकी। 

"पर इसका राज मल्होत्रा से क्या संबंध है" ? हीरेन ने पूछ लिया। 

"मैं अकेली रह गई थी। टूट गई थी। एक दिन मेरी मुलाकात राज मल्होत्रा से हो गई। मैं एक रिसोर्ट में रिसेप्शनिस्ट का काम करती थी। उस रिसोर्ट में राज मल्होत्रा ठहरे हुए थे। उन्होंने मुझमें इंटरेस्ट दिखाया तो मैंने भी स्माइल से उन्हें कैच कर लिया। मुझे एक सहारे की तलाश थी जो राज मलहोत्रा पर जाकर रुकी। तब से मेरे और राज मलहोत्रा के संबंध बन गये। वे जब भी कोलकाता आते, उसी रिसोर्ट में ठहरते थे। इस तरह हमारी मुलाकात हो जाया करती थी। कभी कभी वे मुझे लखनऊ भी बुला लेते थे और उस फॉर्म हाउस में हम लोग खूब मौज मस्ती करते थे"। 

"क्या तुम्हें पता था कि राज मल्होत्रा विवाहित था" ? 

"पहले तो पता नहीं था पर एक दिन जब मैं उसके फॉर्म हाउस पर थी तब उसकी बीवी का फोन आया था। उस दिन मुझे पता चला था। मैं राज मलहोत्रा से बहुत नाराज हुई थी कि उसने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ? लेकिन राज में मनाने का बहुत जबरदस्त हुनर था। उसने मुझे राजी कर लिया कि वह अपनी बीवी को तलाक दे देगा और उससे विवाह कर लेगा। मैं उसकी बातों में आ गयी और उससे रिश्ता बनाये रखा"। 

"फिर उसे मारा क्यों" ? 

"मैंने नहीं मारा उसे"। रिषिता तुरंत बोल पड़ी। 

"फिर किसने मारा है उसे" ? 

"मुझे नहीं पता"। 

"तुम्हारे अलावा और कौन था वहां पर" ? 

"वो केयर टेकर था। पर उसे तो राज ने शराब लेने के लिए भेज दिया था" 

"तुम वहां से भागी क्यों" ? 

"दरअसल राज ने कॉफी की डिमांड की थी। मैं किचिन में कॉफी बनाने चली गई। जब मैं कॉफी बनाकर वापस लौटी तो राज मरे पड़े थे। उनकी लाश देखकर मैं बहुत घबरा गई थी और मैं वहां से भाग आई थी"। 

"संग में नोटों से भरा एक बैग भी लेकर गई थी" ? 

"नो सर, मैं कोई चोर उचक्की नहीं हूं। मैं तो केवल राज का मोबाइल लेकर गई थी"।

"वह मोबाइल कहां है" ? 

"उसे तो गोमती नदी में फेंक दिया था"। 

"पर तुम्हारे घर से तो नोटों से भरा एक बैग बरामद हुआ है। वह कहां से आया" ? 

"वो मुझे नहीं पता"। 

"और ऐसी कोई जानकारी जो तुम देना चाहती हो" ? 

"नहीं। जितना पता था, सब बता दिया है। अब आप जानो और आपका काम जाने। आपके आ जाने से अब मुझे विश्वास हो गया है कि मैं अब जेल से बाहर आ जाऊंगी। क्यों है ना सर" ? रिषिता के चेहरे पर आशा का उजाला फैल रहा था। 

"व्हाई नॉट ! तुम एक दिन जरूर बाहर आओगी, देख लेना। ये मेरा वादा है। हीरेन का वादा। तुम्हारे लिए मैं जमीन आसमान एक कर दूंगा पर तुम्हें अवश्य बाहर निकाल कर रहूंगा"। हीरेन ने रिषिता को हिम्मत बंधाई और वकालतनामा पर उसके हस्ताक्षर लेकर वापस आ गया। 

क्रमश: 


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