Kunda Shamkuwar

Abstract Classics

4.7  

Kunda Shamkuwar

Abstract Classics

रेगिस्तान में कैक्टस...

रेगिस्तान में कैक्टस...

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"तुम क्या हो? चार पैसे कमाकर क्या लाती हो घर में तुम ख़ुद को रानी समझने लगी हो ? ये न भूलो की आय एम द ओनर ऑफ़ दिस हाउस…अँड आय सेट रूल्स फॉर माय सेल्फ...सो प्लीज़ माइंड योर ओन बिज़नेस..."

वह अवाक रह गयी...कितनी छोटी सी बात थी..उसने सिर्फ़ एक बात ही तो कही थी...कहाँ गए थे? इतने भर से ही वह बिदक गया था। बिगडने के बाद यही सब बातें वह किया करता था। उसकी इन बातों से वह जान गयी की आज वह ज़रूर मीना से मिलने के लिये गया था।

कभी मीना को वह चाहता था लेकिन मीना की तरफ़ से ऐसी कोई बात नहीं थी। उसके लिए बस वह एक क्लासमेट ही था। इसी तरह कॉलेज ख़त्म होने के बाद सब लोग अपनी अपनी ज़िंदगी में मसरूफ़ हो गये। इसी हालात में हमारी शादी हो गई। शादी होने के बाद वाक़ई हमारी ज़िंदगी बदल सी गई। नया परिवेश, नये रिश्तें, नये  अहसास, कुछ नयी जिम्मेदारियाँ और भी न जाने क्या क्या...ज़िंदगी ख़ुशगवार लगने लगी थी। लेकिन कभी कभी कोई बात हो जाती थी।

एक दिन किसी गेट टूगेदर में अचानक किसी दोस्त ने दीपक को मीना के बारे में पूछ लिया। सकपकाया हुआ दीपक कभी मुझे देखे तो कभी अपने उस दोस्त को देखे जा रहा था। 

मैंने कहा, "दीपक, आपने तो मुझे मीना जी के बारें में सब बता दिया है। और भाई साहब, जैसे दीपक जी और मैं अपने घर में खुश है वैसे ही मीना जी भी अपने घर परिवार में बेहद खुश है।" अब सकपकाने की बारी उस दोस्त की थी जो न जाने क्या सोचकर यह सब पूछ बैठा था।

"कौन कहता है कि सावित्री सिर्फ़ किताबों और कहानियों में होती है?" रात को दीपक मुझसे कह रहे थे। "सावित्री तो वह होती है जो पति या अपनी गृहस्थी पर कोई आँच न आने दें…गर पति की कोई बात हो भी तो उसे उसे संबल दे...उसे सँभाले...उसे संभलने का एक मौक़ा दे..."

आज की रात एक अलग ही रात थी..वह आपसी विश्वास की रात थी..चाँद भी जैसे खिड़की से झाँक कर मुस्कुराता हुआ इस बात की गवाही दे रहा था…


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