विजयी मुस्कान
विजयी मुस्कान
पिछले साल दिवाली के दिए खरीदने बाजार में गई तो देखा छोटा लड़का स्कूल यूनिफार्म में अपनी माँ के साथ दिए बेच रहा था । समझ आ गया था कि वह स्कूल के बाद सीधा माँ की हेल्प करने के लिए पहुंँच गया है । बच्चे को देखा उसी की ओर आकर्षित हो मैं उन्हीं के पास चली गई ।
अभी मैं दिए छाँट रही थी कि एकदम से बच्चा उठा और दौड़ गया। मुझे कुछ समझ नहीं आया , थोड़ी देर के बाद जब तक मैंने दिए सब छाँटे तब तक वह लौटकर आ गया। मैंने उससे पूछा ,"बेटा तुम उठकर क्यों चले गए थे?" एकदम से बच्चे का जवाब था, " आँटी सामने से मेरी स्कूल के दो बच्चे आ रहे थे और मुझे वह यहाँ बैठा देखते तो कल क्लास में मेरा मजाक उड़ाते।" बच्चा छोटा था और उसने वह कड़वी बात सच में कह दी थी शायद जिसका सामना उसे कल करना पड़ सकता था । मैंने उससे कहा," बेटा तुम उन बच्चों से कहीं ज्यादा समझदार और माता-पिता का गर्व हो, जो इतनी छोटी उम्र में पढ़ाई के साथ-साथ अपने माता-पिता की सहायता का भाव अपने मन में रखते हो।" मैंने समझाया," ऐसी बातों पर कभी भी ध्यान मत दो। दिल से पढ़ाई करो और दिल से माता-पिता की सेवा व सहायता करो। तुम्हें जिंदगी में कोई भी आगे बढ़ने से रोक नहीं सकता। तुम एक दिन बहुत बड़े इंसान बनोगे । कोई काम छोटा या बडा नहीं होता, छोटी-बड़ी होती आदमी की सोच ।"
बच्चा एकदम से खुश हो गया उसने मुझसे कहा," आंँटी आप टीचर हो ?" मैं हंस दी। टीचर चाहे कहीं भी हो अपना ज्ञान देने का काम छोड़ नहीं सकता है ? जानती हूँ बाल मजदूरी अपराध है, पर अपनों के लिए, अपनों के साथ काम करना बुरी बात नहीं । थोड़ी सी सहायता से अगर घर की दिवाली अच्छे से मन जाए तो उसमें बुरा ही क्या है ?
अगले दिन फिर से मैं वहीं गई, यह देखने के लिए कि बच्चा मांँ की सहायता के लिए आया या नहीं । खुशी थी कि वह वहाँ खड़ा था और जोर से ग्राहकों को बुला अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। मुझे देखते ही पहचान गया और बोला आँटी आज और ले जाओ।जरूरत ना होने पर भी मैंने फिर से दिए खरीद लिए और उसके चेहरे की मुस्कुराहट विजयी मुस्कान लग रही थी।