विडंबना
विडंबना
मर्दों से भरी दुनिया में,
"औरतों की जिंदगी" कहां आसान होती है।
मर्दानी तो हर घर में हुआ करती है,
पर उनकी जुबान तो खामोश होती है।
जिनके घरों में "औरतों "की कोई औकात नहीं होती।
वहां बेटियां अक्सर बाप की जान होती है।
कहता है एक पिता, आई.ए.एस., आई.पी.एस.
बनाऊंगा तुझे।
कहता है हर पिता दुनिया में नया रुतबा दिलाऊंगा तुझे,
यह एक बाप को कहां पहचान होती है,
जाएगी जिस घर में, वहां आई.ए.एस.,
आई.पी.एस. की नहीं, मर्दों की जुबां होती है।
जब करे बेटा पैदा तो,
तभी उस घर में उसकी शान होती है।
गर - अगर हो जाए बेटियां तो,
वह अपने ही घर में अनजान होती है।
कहता है घर,
अरे वह औरत,
बेटों से घर की शान होती है।
संभल ना पाई थी, जन्म देकर बेटी को,
फिर एक बार कोख उसकी आबाद होती है
हो, अगर बेटी दोबारा,
तो,
वह ग्रह भूमि उसके लिए श्मशान होती है।
वैसे मर्दानी तो हर घर में हुआ करती है,
पर उसकी जुबान तो खामोश होती है
पर उसकी जुबान तो खामोश होती है।