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Arunima Thakur

Abstract Inspirational

4.8  

Arunima Thakur

Abstract Inspirational

क्रेयांश या पेन

क्रेयांश या पेन

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अमला दरिया के किनारे बैठी हुई डूबते हुए सूरज को देख रही थी। कितने आसानी से लोग कहते हैं कि सूरज रोज डूबता है, फिर रोज उग आता है एक नई सुबह, नए विश्वास के साथ। पर वास्तविक जीवन में डूबकर उगना कहाँ हो पाता है ? यह सब कहने की बातें हैं।

 सामने बहुत सारे बच्चे खेल रहे है अपनी मम्मियों का हाथ पकड़ कर, पर उसकी उँगली खाली थी। बच्चे बड़े हो जाते हैं तो वैसे भी उँगली छोड़ देते हैं । आज नहीं तो कल यह हाथ छूटना ही था, यह साथ छूटना ही था। कहीं दूर कोई बच्चा चिल्लाया, "मम्मा मम्मा"। अमला अपनी यादों में पहुँच गयी, "मम्मा देखो ना, आज मेरा कंपास बॉक्स नीचे गिर गया था। उसी समय उधर से यश निकल कर जा रहा था। उसका पैर मेरे कंपास बॉक्स से गिरे सामानों पर पड़ा। देखो ना मेरा पेन टूट गया", अमला का बेटा गुस्से से अमला से बोला।

"कोई बात नहीं ! जाने दो बेटा ! उठा कर फेंक दो, दूसरा ला दूँगी", अमला अपने बेटे बहलाते हुए बोली।

"मम्मा मेरे क्रेयांश (मोम कलर) भी टूट गए" ।

"तो क्या हुआ बेटा ? क्रेयांश से तो टूटने के बाद भी कलर कर सकते हैं ना", अमला ने अपने बेटे अनन्त को मुस्कुरा कर देखा।

उसका बेटा भी उसकी ओर देखकर बड़े प्यार से मुस्कुरा रहा था। मानों वह कुछ कहना चाहता हो।

"एक कक्षा चार में पढ़ने वाला बच्चा ! भला क्या कहेगा अपनी मम्मी से ?

"उसका बेटा अनन्त बिल्कुल अपने पापा जैसा दिखता है। पता नहीं क्यों ? कभी-कभी उसे अनन्त को देखकर बहुत गुस्सा आती है । उसे लगता है कि आज अगर अनन्त ना होता तो शायद वह सब कुछ छोड़ कर, कहीं जा कर मर जाती । उसे जीने का मन ही नहीं करता है । जिंदगी तो बस उसके पति तनय के साथ ही खत्म हो गई थी। अमला के पति तनय की मौत अभी कुछ सात महीने पहले कैंसर से हुई है। अमला समझ नहीं पाती है कि वह भगवान का शुक्रिया अदा करें कि भगवान ने उसे चंद महीने दिए कि वह अपने पति के साथ जी सके। जाना ही था तो उसके पति की मौत किसी एक्सीडेंट में भी हो सकती थी पर फिर बहुत कुछ कहना सुनना बाकी रह जाता। शायद इस तरह से कैंसर का पता लगने के बाद से उसने तनय के साथ न जाने कितनी अनकही बातें कर ली थी। लोग कहते, आपको अंदाजा तो हो ही गया होगा।

 अमला को बहुत गुस्सा आती है ऐसे लोगों के ऊपर। वह ऐसा कैसे कह सकते हैं ? आदमी तो अपनी आखिरी साँस तक कोशिश करता है। भगवान पर भरोसा करता है। लगता है कोई ना कोई चमत्कार तो हो ही जाएगा । नहीं होता है तो अपनी किस्मत पर रोता है । अमला भी भगवान पर बहुत भरोसा करती थी। आज अपनी किस्मत पर रो रही है। इसीलिए उसे अनन्त पर गुस्सा आता है । वह नहीं होता तो मरना कितना आसान होता। अब वह है तो उसके लिए जीना है । कभी-कभी लगता तनय है उसके पास अनन्त के रूप में। अनन्त एकदम तनय की परछाई है। उसे याद आ गया जब अनन्त होने वाला था तो उसके पति हमेशा उससे कहते थे, "देखो ध्यान रखना। शक्ल अपनी देना और बुद्धि मेरी देना"।

पर जब अनन्त हुआ तो उसके पति ने बोला, "सब गड़बड़ कर दिया ना । शक्ल मेरी दें दी अब तो पक्का बुद्धि तुम्हारी होगी"। वह तनय को याद करके मुस्कुरा दी। इतना प्यार करते थे तनय उसको कि तनय को याद करके उसकी आँखों में कभी आँसू कभी आते ही नहीं है। बस मुस्कुराहट ही आती है अमला अपने मन को कठोर करती । उसे जीना है, उसे जीना है । अपने बेटे के लिए, उन सपनों के लिए, जो उसके पति ने देखे थे" उसके बेटे के लिए । हाँ वह जिएगी । उसने बेटे को मुस्कुराते हुए देखा तो लगा पति मुस्कुराते हुए उससे कह रहे हैं अमला तुम्हारी जिंदगी इस पेन की तरह नहीं है कि परिस्थितियों के प्रहार से टूट जाएगी तो बेकार हो जाएगी । तुम्हारी जिंदगी तो इन क्रेयांश की तरह है टूटने के बाद भी रंग भरने का गुण नहीं जाता"।

 क्या सच में उसकी जिंदगी क्रेयांश की तरह हो गई है। टूटना ही उसका नसीब बन गया है। भगवान अभी कितना और तोड़ोगे ? पति के बाद बेटा ही एक सहारा था। तुमने उसको भी ले लिया । आँसू भरी आँखों से वह डूबते हुए सूरज को देख रही थी। डूबता हुआ सूरज भी पूरे आकाश को मनमोहक रंगीन कर गया था।

 उसे अपने बेटे की याद आ गई । सच ही तो कहा था उसने, "वह टूटा हुआ पेन नहीं है कि लिखने के काम ना सके। वह तो क्रेयांश जैसी है। कितने भी टुकड़े कर दोगे , रंग भरने का उसका गुणधर्म नहीं जाएगा । 

अमला उठ खड़ी हुई मन में कुछ विचार करके। भले ही वह अपने सपने, अपने पति के सपने, अपने बेटे के सपने को पूरा नहीं कर सकती । पर दुनिया में बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जिनके पास सपने हैं पर सपने देखने की ताकत नहीं। अब से वह उनके सपनों में रंग भरेगी । 

इतने सालों में वह इतना तो जान ही गई है कि मरना अपने हाथ में नहीं होता है। पर जीना तो अपने हाथ में ही है। उसे टूटा हुआ पेन बन कर डस्टबिन (कूड़ेदान) में जाना है या कई बार टूटने के बाद भी क्रेयांश की तरह रंगहीन तस्वीरों में रंग भरना है ।

अमला निश्चय कर चुकी थी। मरने वालों के साथ मरा नहीं जाता है पर जीने वालों के साथ जीना पड़ता है। वह भी इतने जोर शोर से कि जीवन के बाद भी आपका नाम लोगों के दिलों दिमाग में गूँजता रहें।


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