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Arunima Thakur

Abstract Romance

4.8  

Arunima Thakur

Abstract Romance

दोस्त या...

दोस्त या...

9 mins
269


अलका जी बहुत घबराई हुई थी अभी अभी दिल्ली से उनके सबसे अच्छे दोस्त अमर की बहू का फोन था कि पापा जी आपसे मिलना चाहते हैं। आज तक तो हमेशा अमर ही फोन किया करता था। आज उसकी बहू ने फोन किया.. मतलब. . . क्या हुआ ? बीमार है ? ऐसा होता तो इतना पूछने पर बहु कुछ तो बताती। उन्होंने फोन करके अपने पति को बताया। तो पति ने भी कहा कि जाकर मिल कर आओ । अलका जी के पति की कोई अर्जेंट मीटिंग है। इसलिए वह चाह कर भी साथ नहीं आ सकते थे । शाम की फ्लाइट की टिकट की निकलवा दी है lज्यादा कुछ तैयारी तो करनी नहीं थी । अलका जी ने बस दो जोड़ी कपड़े रखें। वह तो अच्छा हुआ कि ससुराल से बेटी आई हुई थी। एयरपोर्ट के लिए रवाना होने के लिए बेटी ने कैब बुला दी । बेटी समझदार है एक-दो दिन रुक कर घर संभाल लेगी । इसीलिए अलका जी भी निश्चिंत थी। बेटी ने अलका जी को दिलासा दिया कि मम्मी आप परेशान मत होइए । अंकल का आपसे बातें करने का मन हुआ होगा इसीलिए आपको याद कर रहे होंगे। वैसे भी अंकल है भी तो कितने बातूनी I


 एयरपोर्ट पहुंचकर सारी सुरक्षा जाँच प्रक्रिया से गुजरने के बाद हवाई जहाज में बैठकर अलका जी ने अपने आसपास के यात्रियों को देखा I सब कुछ ठीक लगा । तो वे इंतजार करने लगी। उन्हें प्लेन का टेक ऑफ करना बहुत भाता है । वह द्रुत गति से हवाई पट्टी पर हवाई जहाज का दौड़ना, वह हौले से ऊपर उठकर, उड़ने लगना I वास्तव में अलका जी को हवाई जहाज के सफर में दो बातें ही पसंद है टेक ऑफ और लैंडिंग I आज तो हवाई जहाज के हवाई पट्टी पर दौड़ते ही अलका जी का मन अतीत के गलियारों में दौड़ गया। वह और अमर बचपन के दोस्त, सच्ची वाले लंगोटिया दोस्त। क्योंकि उनकी मम्मी बताती हैं अमर के होने के कुछ आठ महीने बाद वह हुई थी । तो अमर की मम्मी ने अमर के लिए बनाए गए सारे कपड़े, सारी गद्दियाँ, सारी लंगोटिया इस्तेमाल करने के लिए उसकी मम्मी को दे दिए थे । तो वह हुए ना लंगोटिया दोस्त, हा हा हा सोचते सोचते उनके चेहरे पर हंसी आ गई। उन दोनों का परिवार एक ही घर में ऊपर नीचे किराएदार थे । मकान मालिक ने नीचे का घर अमर के परिवार को और ऊपर का हिस्सा अलका के परिवार को किराए पर दिया था। इन दोनों के जन्म के सालों पहले से दोनों परिवार बहुत शांति से मिलजुल कर रहते थे । वैसे तो अलका की मम्मी बड़ी थी पर उनको कोई बच्चा नहीं था। तो अमर के आने के समय उन्होंने हर संभव तरीके से अमर की माँ की देखभाल की थी । यहां तक की अमर के पापा के अनुपस्थित में प्रसूति तारीख से थोड़ा पहले होने की स्थिति में अलका के मम्मी पापा ही उनके साथ उनको अस्पताल ले कर गये थे। अलका की मम्मी इसलिए भी अमर को बहुत मानती थी कि उसके आने के साथ ही उनकी गोद हरी हो गई थी।


दोनों बच्चे चारों माता-पिता की ममता तले बढ़ रहे थे । आसपास मोहल्ले में हम उम्र बच्चे ना होने के कारण भी दोनों में ज्यादा दोस्ती थी। जैसा कि हम अक्सर दोस्ती में कहते हैं कि हम अपने बच्चों की शादी आपस में कर देंगे, वैसे यहां कुछ भी नहीं था क्योंकि दोनों ही परिवार अपनी अपनी जाति की मर्यादा जानते थे। हां पर रक्षाबंधन में अन्य भाई बहनों को राखी बांधते देख दोनों का मन ललचाता । तोअलका ने बाद में कई सालों तक अमर को राखी भी बांधी । पर फिर सातवीं में आते आते अमर के परिवार ने उसको बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया। उनके मतानुसार छोटे शहरों में पढ़ने और व्यक्तित्व विकास की सुविधाएं अपेक्षाकृत कम होती हैं। इस तरह अब दोनों कभी कभार छुट्टियों में ही मिल पाते पर दोस्ती अभी भी बरकरार थी । रात को साथ बैठकर कॉफी पीना और दिन भर की गप्पे मारना और कोई भी बात अपने जीवन की पहली बात सबसे पहले एक दूसरे के साथ ही साझा करते। यहाँ तक कि अमर ने उसे पहली बार अपनी दाढ़ी बनाती हुई तस्वीर भी भेजी थी। उसने भी तो अमर को बताया था कि अब वह बड़ी हो गई है । अमर ने यह सुनकर उससे कोई सवाल नहीं पूछा । क्या वह जानता हैं इस बारे में ? तो अमर ने बताया कि मम्मी भी महीनों के कुछ दिनों में बहुत थकी और चिड़चिड़ी लगती थी तो मैंने अनुमान लगाया कुछ तो है I तो फिर मैंने मम्मी से पूछा तो मम्मी ने मुझे समझाया। इसीलिए कभी-कभी महीने के उन दिनों में अगर अमर अलका के आस पास होता तो बगैर कुछ पूछे उसका चेहरा देख कर ही समझ जाता और उसकी बहुत देखभाल करता । वरना हमेशा तो ए मोटी मेरा यह काम कर, ए मोटी मेरे लिए मैगी बना, ए मोटी मेरे कपड़े इस्त्री कर । बस परेशान ही करता रहता ।


 समय को पंख लगाकर उड़ते देर नहीं लगती। वैसे भी लड़कियां लड़कों से जल्दी बड़ी हो जाती है। अमर अभी एमसीए के अंतिम वर्ष में ही था कि अलका के लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता आया । अलका सोच रही थी उसे कैसा लड़का चाहिए? तो उसके दिमाग में अमर का चेहरा घूम गया। अमर जैसा ? अमर जैसा ? अपनी सोच पर वह खुद ही शर्मा गई । छि : वह तो मेरे भाई जैसा है। फिर खुद को दिलासा भी दिया । भाई दूज की कहानी में यमी ने भी तो यम, अपने भाई को पसंद किया था। वैसे भी किसी भी लड़की का पहला प्यार उसके पिता, उसके भाई ही होते हैं । अगर मैं अमर जैसे पति के लिए सोचती हूं तो क्या गलत है ? खैर लड़के वालों ने अलका को पसंद कर गोद भराई की रसम भी कर दी । यह सब अलका के लिए अप्रत्याशित था, पर अलका खुश थी। उसे दुख सिर्फ इस बात का हो रहा था कि वह अमर को बता नहीं पाई थी । उन लोगो के जाने के बाद उसने पहला फोन अमर को लगाया और बताया। अमर ने दो तीन बार सिर्फ इतना ही पूछा तू खुश तो है ? तेरे दिल में कोई और तो नहीं हैं ना ? नहीं तो मैं आंटी अंकल से बात करता हूँ। अलका के बोलने पर कि वह बहुत खुश है अमर ने उसे बधाई दी और फोन रख दिया। छुट्टियों में जब अमर घर वापस आया तो अलका की शादी की तैयारियां शुरू हो चुकी थी। उसने भी अलका को छेड़ते हुए, परेशान करते हुए, शादी की सभी तैयारियों में सहयोग किया। अलका की माँ तो यही बोलती कि अमर के रहते हुए हमें लड़के की कमी कभी महसूस ही नहीं हुई । शादी के बाद अलका विदा होकर अपनी ससुराल कोलकाता आ गयी। कुछ सालों बाद अमर की भी शादी तय हो गई । तब पंद्रह दिन पहले पहुंचकर अलका ने सारी जिम्मेदारियां संभाली l शादी के कुछ वर्षों बाद अमर दिल्ली में बस गया । अब मिलना तो नहीं हो पाता था क्योंकि दोनों के मम्मी पापा किराए का घर छोड़ कर अपने अपने शहरों में जाकर बस गए थे । पर वह बचपन की आदत कोई भी सुख दुख की बात सबसे पहले वह दोनों एक दूसरे के साथ ही साझा करते । भगवान का शुक्र था कि दोनों के जीवन साथी इस बात को बहुत हल्के में लेते थे। वास्तव में तो अब अमर अलका के पति का अच्छा दोस्त था और अलका अमर की पत्नी की अच्छी सहेली। दिन अच्छे से गुजर रहे थे दोनों को बच्चे भी हो गए थे। बच्चे बड़े भी हो गए थे। यहां तक कि अलका उसके पति व बच्चे अक्सर अपनी ननिहाल के साथ साथ अमर के माता-पिता के घर भी जाते थे । ऐसा ही अमर के यहां भी था वह भी अलका के माता-पिता के घर जाते रहते, मिलते जुलते रहते । सब कुछ बहुत अच्छा था। पर पता नहीं क्यों यह आज . . . . . अचानक अलका जी को लैंडिंग का झटका लगा और वह अतीत से वर्तमान में आ गई ।


एयरपोर्ट से बाहर निकलते वक्त टैक्सी करने जा ही रही थी कि "अलका आंटी" का एक परिचित स्वर उन्हें सुनाई दिया । उन्होंने पलट कर देखा अमर के बेटे व बहू उन्हें लेने आए थे । उन्हें आश्चर्य मिश्रित खुशी हुई, इसका मतलब सब ठीक है । उन्होंने पूछा तुम्हें कैसे पता चला कि मैं आने वाली हूँ फिर खुद ही बोली शायद उन्होंने फोन करके तुम लोगों को परेशान किया होगा। तो अमर की बहू बोली नहीं आंटी अंकल जी का फोन नहीं आया था । वह तो पापा जी ही बार-बार बोल रहे थे। जा कर अलका को लेकर आओI तो हम उनका कहना मान कर आ गए । और देखो आप सच में आ गई । हमें तो लगा था कि आप कल सुबह तक आओगी। अलका जी मुस्कुराई यह अमर भी ना पता नहीं कौन सा जुड़ाव है, पता नहीं कौन सी नस जुड़ी हुई हैं कि बचपन में भी वह समझ जाता था जब भी मैं कहीं बाहर से आने वाली होती थी। आपस में बातें करते कुशलक्षेम पूछते घर पहुंचे तो अमर ने ही हंसते हुए दरवाजा खोला, "और मोटी कैसी है ? मेरे रसगुल्ले लाई कि नहीं ? "अलका जी ने उन्हें घूरते हुए देखा मतलब . . . . ? अमर हँसते हुए बोले, " मतलब यह कि मेरा कोलकाता के रसगुल्ले खाने का मन था । अगर मैं बोलता तो क्या तुम रसगुल्ले लेकर आती ? तुझे क्या लगा मैं निपट गया निकल लिया। अलका जी झेंप गयी। क्योंकि उन्होंने सच में सोचा तो कुछ ऐसा ही था। वह तो भला उनके पति का जिन्होंने चलते समय जबरदस्ती अमर की पसंद के रसगुल्ले ला कर दिए कि लेकर जाओ।


रात को खाना खाने के बाद सब सोने चले गए अमर की पत्नी भी "मैंने दवाई खाई है। मैं सोने जा रही हूँ। तुम दोनों बैठ कर आराम से बातें करो । अलका हम सुबह बातें करेंगे" कहकर काफी के दो मग रख कर चली गयी । अमर जी ने अलका के हाथ से काफी का मग वापस लेकर नीचे रखकर, उनका हाथ पकड़ते हुए बोला, "मुझे तुमसे कुछ कहना था"। अलका जी तो कुछ समझ ही नहीं पायी। आज तक अमर ने कभी उनको छूकर बात नहीं की थी । पर उन्होंने हाथ नहीं छुड़ाया । उन्हें लगा कि यह अभद्रता होगी। उम्र के इस सोपान पर आकर दोस्तों में इतना तो चलता है । वैसे भी आजकल के बच्चे तो दोस्तों के हाथों में हाथ डालकर घूमते हैं। उन्होंने बोला क्या कहना था अमर ? कुछ परेशानी है क्या ? बोलो मैं कुछ सहायता कर सकती हूँ क्या ? अमर ने उनकी आंखों में झाकते हुए कहा कि कभी नहीं कह पाया ना बचपन में, न चालीस साल पहले, कभी भी नहीं, शायद आज भी नहीं. . . . नहीं मैं आज यह कह कर ही मानूंगा । अलका मैं तुम्हें सिर्फ दोस्त नहीं मानता हूँ, बहन भी नहीं मानता हूँ , तुम मेरे लिए दोस्त से कुछ ज्यादा हो, बहुत ज्यादा । हमेशा डरता रहा कि कहीं "आई लव यू" बोलकर तुम्हें खो ना दूँ। बचपन से सिर्फ तुमसे ही प्यार किया था, आज भी करता हूँ। आज भी कह नहीं पाता तो मैं चैन से मर भी नहीं पाता। अलका जी भी मन ही मन में सोच रही थी सच तो है कि जिस सच्चे दोस्त की वह पूजा करती हैं वह उनका हमसफर भी तो बन सकता था ना। उन्होंने भी कभी नहीं जताया सिर्फ इसीलिए कि वह भी अमर की दोस्ती को खोना नहीं चाहती थी । उनके लिए भी अमर दोस्त से ज्यादा थे कहीं ज्यादा बहुत ज्यादा ।


आज जब दोनों एक दूसरे का हाथ थाम कर बैठे थे तो मानो वक्त थम सा गया था। रात रुक सी गई थी । जिंदगी भी थम गई थी । सुबह परिवार वालों ने देखा दोनों दोस्त एक दूसरे का हाथ थामे अनंत यात्रा पर मुस्कुराते हुए निकल चुके है। 


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