आज की इंसानियत
आज की इंसानियत
उस गली से मेरा रोज़ का आना- जाना था ,
सब कुछ मेरा जाना पहचाना था
पर न जाने आज क्यूँ कुछ बदला हुआ सा लगा ,
क्योकि आज वहाँ लोगों की बहुत भीड़ सी लगी थी
उत्सुकतावश हम भी पास जा कर खड़े हो गए ,
पर भीड़ ज्यादा होने पर कुछ देख ना पाये
कोई कह रहा था बेचारा था बहुत प्यारा ,
सुंदर था और था सबका सहारा पर आज ये यहाँ पड़ा है ,
हमने सोचा न जाने कौन है , अगर चोट लगी है तो कोई उठा क्यूँ नहीं रहा
बिन मतलब कोई किसी का नहीं होता शायद किसी ने सच है कहा ,
हमने देखा वो वहाँ खून से लथपथ पड़ा था ,
सारा बदन उसका मिट्टी से सना था ,
शायद किसी ने उसे कुचल डाला , और उसका सिर चकनाचूर था ,
पर शायद उसका हमदर्द उससे दूर था
और थोड़ी देर मे भीड़ वहाँ से छटने लगी ,
मै वह अकेली खड़ी रह गई ,
की क्यों इंसान इतना निष्ठुर हो जाता है,
क्यों वो अपने फर्ज़ को भूल जाता है
ऐसे ही उस गली के कुत्ते की लाश वहाँ पड़ी रही ,
पर किसी ने उसका दाहसंस्कार नहीं किया
ऐसा ही आगे होगा पर तब होगा उसकी जगह एक मानव ,
और तब दूसरा इंसान उसे देखकर ,
यूँ ही निकल जाएगा जैसे वो एक कुत्ता है