आजभी ..
आजभी ..
क्या ?क्यों ? मत पूछना ..
जलती ,झुलसती बेटियां
कोख में ही दम तोडती बेटियाँ
आज भी..
अंजाम क्यों हैं ? ये भी मत पूछना..
ना पूछना क्यों कम हो रहीं घरों में बेटियां ?
आज भी मत पूछना..
हैं दहेज का बोझ आज भी
हैं चिंता इज्जत की आज भी
हो रहा चिरहरण आज भी
गलती किसकी ? ये भी मत पूछना
हैं बेतुकीसी रस्मो रिवाज..
हैं बेटीके सिर पर ही झूठा सा ताज
नाजुक बडा हैं शीशा इस ताज का
टुटा जो तो नाम खराब खानदान का
आज भी ..
पूछती वही आज जमाने से
क्या कोख नहीं चाहत तुम्हारी ,भागावान सें
ना माँ ,ना बेटी ..
ना पत्नी ,ना बेहन
कैसे इन रिश्तों का
पाओगे एहसास बगैर बिटिया के..
..आज भी