"छद्मता"
"छद्मता"
कुछ लोग छद्मता दुनिया में यूं मशगूल रहे।
हकीकत की दुनिया को कहते वो धूल रहे।।
परन्तु जितना ज्यादा वो हकीकत से दूर रहे।
वो दरिया में रहकर सच में प्यास से दूर रहे।।
जिस दिन उनका हकीकत से होगा सामना।
सच कह रहा हूं, उन्हें फूलों में चुभते शूल रहे।।
ऐसे लोग तो उजाले में भी अंधेरे की भूल रहे।
छद्मता जिंदगी के कारण, छाया में भी धूप रहे।।
जो दिखावटी दुनिया में, हद से ज्यादा कबूल रहे।
ऐसे दिखावटी लोग, प्लास्टिक के खाते अंगूर रहे।।
जो जलते रहे दीपक जैसे, पर बरकरार वसूल रहे।
वो छद्मता पत्थरों बीच चमकते हुए, कोहिनूर रहे।।