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Shakuntla Agarwal

Abstract Tragedy Others

4.8  

Shakuntla Agarwal

Abstract Tragedy Others

"चीत्कार"

"चीत्कार"

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457


       मेरी एक ना ने

   तुम्हें इतना निष्ठुर बना दिया

तुमने तेजाब से मेरा चेहरा जला दिया

    मुझे अजायबघर में सजा दिया

क्या तुम्हारी आसक्ति इतनी गहरी है ?

   मुझे क्या अब भी अपनाओगे ?

मेरे क्षत -विक्षत अंगों को सहलाओगे 

   मेरे धूमिल तन को सजाओगे

मेरे दहकते गालों का स्पर्श कर पाओगे 

   जर्जर बालों में वेणी पहनाओगे

जिस्म की भूख ने तुम्हें शैतान बना दिया

 मेरे सुनहरे भविष्य को दाव पर लगा दिया

      तुम क्या जानो प्यार

       तुम हवस के यार

    जिन्दगी कर दी तार-तार

मेरे अन्तरात्मा की चीत्कार क्या सह पाओगे

  आईना जब भी निहारोगे पछताओगे

   अपने चेहरे पे मेरा चेहरा पाओगे

     जहाँ जाओगे मुझे पाओगे

    मेरे दर्द से तुम भी कराहोगे

     रातों को चैन नहीं पाओगे

 सोचते हो, मेरे अस्तित्व को मिटा दिया

  नारी हूं मैं, ना दहली हूँ ना दहलूंगी

मानव की इस क्रूरता को भी हंसी-खुशी झेलूंगी |     

   


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