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Ajay Singla

Classics Inspirational

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Ajay Singla

Classics Inspirational

धुन्ध

धुन्ध

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धुँधला धुँधला जगत दिख रहा 

धुँधली दिखती छटा भी तेरी 

मन में उठते विचार भी धुँधले

मन की आँखें प्रभु खोल तू मेरी।


विषयों में पड़ कर हृदय भी 

धुँधला हो गया मेरा सारा 

क्या पाप है, क्या पुण्य है 

मैं हूँ इस दुविधा का मारा।


किस पथ को चुनूँ, असमंजस में 

धुँधले दिखते पथ ये सारे 

जो पथ मेरे लिए बना हो 

हे भगवन, मुझको दिखला रे।


धुँधलापन मेरे तन मन का 

ना जाने ये कब छूटेगा 

मेरी मैं और मेरेपन का 

घमण्ड जो है , ये कब टूटेगा ।


धुँधली घनघोर काली रात ये 

दूर हटे ये घुप्प अंधेरा 

बीत जाए ये अंधकार घना

आए नया दिन, एक नया सवेरा।


धुँधली धरती, धुँधला आकाश और 

धुँधला ये सारा ब्रह्माण्ड है 

अस्पष्टा का राज्य सभी जगह 

देखना चाहता इनको स्पष्ट मैं।


दुःख - सुख की ये धुन्ध हटे और 

अब हो परमानंद की बारी 

ज्ञान की वर्षा करो प्रभु मेरे 

दूर करो तुम धुन्ध ये सारी।


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