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Ajay Singla

Inspirational

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Ajay Singla

Inspirational

इच्छा

इच्छा

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पैदा हुआ दूध की इच्छा

रोकर माँगने लगा मैं माँ से 

तृप्त हुआ घंटे के लिए बस 

ऐसे ही बीत गए छः महीने ।


इच्छा अब कुछ खाने की हुई 

मीठा मीठा ज़्यादा भाए

जीभ नमक का स्वाद भी चखे 

दो दांत आगे के आए ।


दो साल में दांतों से भरा मुँह

खाना अब चबा चबा के खा रहा 

इच्छा अब चटपटा खाने की 

दूध अब थोड़ा कम ही भा रहा ।


खेल कूद में अब मन ज़्यादा लगे 

स्कूल के लिए तैयार है होना 

गुरु पढ़ा रहे विद्या हमको 

इच्छा ना हमारी बसता ढ़ोना ।


इच्छा पूरा दिन खेलते रहें 

ना पढ़ना हो ना हो सोना 

पाँच साल बीते ऐसे ही 

कभी हसीं कभी रोना धोना ।


पढ़ना एक मजबूरी सी थी 

अब इच्छा प्रथम आऊँ क्लास में 

दुनिया की दौड़ में लग गया मैं 

और पहुँच गया दसवीं में ।


तीन साल अब बहुत पढ़ाई 

स्कूल भी और ट्यूशन भी 

डाक्टरी में प्रवेश पा लिया 

माता पिता की यही इच्छा थी ।


दस साल इसी में लग गए 

डाक्टर बन आया मैं घर में 

इच्छा अब कि शादी हो मेरी 

हस्पताल बनाऊँ बग़ल में ।


शादी हो गयी, हस्पताल चल पड़ा 

धन सम्पत्ति बहुत आ गयी 

बच्चे हो गए, पढ़ लिख भी गए 

इच्छा अब कर दूँ उनकी शादी ।


ये भी सब हो जाएगा और 

उनके भी बच्चे हो जाएँगे 

समय बड़ी तेज़ी से भाग रहा 

दिन बुढ़ापे के आएँगे ।


अब इच्छा होगी कि स्वस्थ रहूँ मैं 

कहीं कोई बीमारी ना घेर ले 

बच्चों पर बोझ ना बनना चाहता 

कोई अपना मुझसे मुँह ना मोड़ ले ।


इच्छाएँ ख़त्म ना हों कभी 

एक ख़त्म दूजी तैयार है 

तृप्त कभी ना हो चंचल मन 

जीवन का ऐसा ही व्यवहार है ।


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