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Ajay Singla

Inspirational

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Ajay Singla

Inspirational

तृष्णा

तृष्णा

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तृष्णा 


तृष्णाएँ तृप्त ना हों कभी 

कामनाएँ हैं बढ़ती जातीं 

छोटा सुंदर घर पास में है पर 

बड़ा हो, सदा ये इच्छा मन की ।


बड़ा हुआ, अब इससे भी बड़ा हो 

मन को फिर भी सब्र ना आया 

बनते बनाते उमर बीत गयी 

बूढ़ा हुआ शरीर, ये काया ।


धन लाख जब पता ना क्या करूँ

अब करोड़ है, अब भी पता नही 

कर्म करूँ पर सब इसके लिए 

बढ़ती जाती इसमें आसक्ति ।


मेरा घर और ज़मीनें मेरी 

और मेरी ये दौलत, पैसे

डर लगता रहता सदा मुझे 

छीन ना ले मुझसे कोई इसे ।


सोच समझ कर कर्म करूँ मैं 

रखूँ उनसे मैं सुख की आशा 

परंतु सुख ना मिलता उनसे 

पूरी ना हो मेरी अभिलाषा ।


कर्म करते हुए उमर बीत गयी 

क्या मैं कर्म ही ग़लत कर रहा 

ना जानूँ क्या अच्छा क्या बुरा है 

उम्र का सूरज भी अब ढल रहा ।


सुख मिलता भी तो क्षणिक है 

दुःख फिर उसके बाद है घेरे 

दुःख और सुख दोनों में सम रहूँ 

ऐसा कुछ करो हे प्रभु मेरे ।


जीवन ये असत्य, असत्य ये जगत है 

एक सत्य बस तू ही तू है 

अपनी शरण में ले ले मुझको 

परमानन्द में रहना चाहता मैं।


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