ग़ज़ल
ग़ज़ल
भारती के नाम पर कुछ कर गुजरना चाहिए।
ये धरा भारत यहां पर वेद पढ़ना चाहिए।
जाग जाते शेर फिर होती कहानी और कुछ
हर भरत को हाथ अब तलवार धरना चाहिए।
क्या कहे हालात कैसे बन गए इस देश के
क्रांति का फिर से बिगुल इकबार बजना चाहिए।
बहसियों से कब तलक लुटती रहेगी आबरू
नारियों को खड्ग खप्पर ले निकलना चाहिए।
चल मिटा डालें यहां आतंकियों की बस्तियां
अब किसी भी आंख से आंसू न गिरना चाहिए।
सर कटाने का चलन है राष्टृ के हित शान से
राष्ट्रवादी चेतना हर मन में रहना चाहिए।
प्रेम में भगवान खाते बेर शबरी के यहां
भावना बस नेक हर इक दिल में रहना चाहिए।
आपसी रंजिश जलन नफ़रत नहीं रखना कभी
बस मुहब्बत का दिया हर दिल में जलना चाहिए।
आ चलो हम सब मिटाएं दहशतों की बस्तियां
फिर नहीं मज़लूम की सिसकी निकलनी चाहिए
कैसे कैसे लोग भी पढ़ने लगे हैं आज-कल
आपको औरत नहीं अख़बार बनना चाहिए।
हर यतीमों की कहानी कौन लिखेगा 'विशू'
अब कलम बेरोक कवि दिन-रात चलनी चाहिए।