ग़ज़ल
ग़ज़ल
हाल-ए-दिल अपना सुनाएं किसको।
ज़ख्म दिल का ये दिखाएं किसको।
दिल कहे आग लगा दूं दिल को
हम-सफ़र दिल का बनाएं किसको
राज़-ए-उल्फत कहें तो क्या किससे
अब शराफ़त भी दिखाएं किसको
हिज़्र की नज़्र तो देनी उस को
सोचता दिल में बिठाएं किसको
पास था जो भी गवां बैठा दिल
लुट गये घर में बसाएं किसको
शर्त इतनी थी वफ़ा'दारी की
ज़ुल्म-ए-फ़रियाद सुनाएं किसको
इश्क़ में जुल्म सहे जो हमने
दास्तां-ए-जुल्म बताएं किसको
प्यास बुझती ही नहीं दिल की 'विशु'
आखिरी जाम पिलाएं किसको।