कदम चाहें नव डगर
कदम चाहें नव डगर
चाहती नज़रें नया कुछ
कदम चाहें नव डगर !
बात यात्रा की करें तो,
जिंदगी है इक सफ़र !
वादियाँ फूलों भरी हों,
हिम ढके हों बस शिखर !
झील गहरी या नदी हो,
उठ रहे हों कुछ भँवर !
खिल रहें हो कमल दल भी,
खिल रहे हों पल, प्रहर !
निर्झरों की धार निर्मल,
या कि बहते स्त्रोत हों !
योग्य दर्शन झाँकियाँ हों,
साथ में मन मीत हो !
दृश्य खींचें नैन चित में,
भावनी हो मन लहर !
भूल जाएं ग़म सभी हम,
मन प्रफुल्लित हो ज़रा !
चाहते खुशियाँ सभी हैं,
खुशबुओं से दिल भरा !
जब छटा बिखरी मिले तो,
वक़्त भी जाए ठहर !
है सफ़र लगता सुहाना,
रेल हो या फिर सड़क !
देश में है जाल बिखरा,
यह विकासों की झलक !
भाल उन्नत हो चला है,
है तिरंगे की फहर !