खोना-पाना
खोना-पाना
जीवन में यदि सुख मिलता है,
दुख साथ-साथ में मिलता है।
सुख अतिथि बनकर आता है,
दुख डेरा डाल के बैठता है।
भगवान भी धरती पर आए,
हर पग पर उनको शूल मिले।
शूलों से नहीं भयभीत हुए
तो शूल भी सारे फूल बने।
चाहे राम हों चाहे श्रीकृष्ण,
कुछ पल का ही सुख पाया था।
अपना सारा जीवन
औरों के सुख की भेंट चढ़ाया था।
सुख और दुख का आना -जाना,
है जीवन भर का यही सिला।
कभी अपने पराये हो जाते,
कभी गैरों से अपनत्व मिला।
जिनके खातिर दुख सहे सभी,
उन अपनों से यह सिला मिला।
जिनको दी शीतल छाँव कभी,
उनसे ही दारुण ताप मिला।
अपनों ने तो अपनत्व दिखाकर,
कदम कदम पर हमें छला।
वृद्धाश्रम में छोड़ा हमको,
और कहा हमारी टली बला।
जीवन में यह खोना- पाना,
हर पल ही चलता रहता है।
सुख-दुःख में सम रहता ज्ञानी,
जीवन धारा संग बहता है।