खुदा की मर्जी
खुदा की मर्जी
न कहो तुम हम को काफिर, हम तुमको ही चाहते है,
तुम से नजर मिलाकर, हम फितरत के करिश्मे बनें है।
न कहो तुम हमको आवारा, हम दिन रात तुमको ढूंढते है,
तुम को पाने के लिये, हम नगर की गली गली में भटकते है।
न कहो तुम हमको मवाली, हम तुमको दिल में रखते है,
तुम्हारी धड़कन को सुनकर, हम इश्क का तराना गाते है।
न समझो तुम हमको गरीब, हम इश्क के शहंशाह है,
इश्क की अमीरात में तुमको, हमारी मल्लिका मानते है।
न रहो हमसे तुम दूर, हम तुम्हारे नैनों के आईने में रहते है,
"मुरली" सिमट जाओ बांहों में, यह खुदा की ही मर्जी है।