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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

4.8  

Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

क्यों हूँ परायी

क्यों हूँ परायी

2 mins
414


बड़ा नाज़ करते हैं वे 

जिनके घर बेटे जन्म लेते हैं 

और बेटी के जन्म लेते ही 

क्यों सवाल मन में पनपते हैं 


क्यों ऐसी समाज की 

प्रथा है यह अजीब 

बेटी को मानते है पराया 

और बेटे हैं दिल के करीब 


समाज में  बेटियों को  

पाला जाता है बड़ी सावधानी से  

एक विवश्ता है सामाजिक 

जाना होता है उस संसार से 


दस्तूर निराला है दुनिया का

माना जाता है उसको पराया धन 

गैरों को होता है अपनाना 

टूट जाता है उसका उस घर से बंधन 


बेटी जिस आँगन की 

होती है खूबसूरत फुलवारी 

और होती है माँ बाप की परछाई

फिर भी कहलाती है परायी  


योगदान रहता हैं उसका भरपूर 

माता-पिता के संसार में 

बेटों की तरह ही प्यार करती है  

मगन रहती है उनके प्यार में 


कोमल भावों से हमेशा 

भरी रहती है उसकी  काया 

खुशियां घर की महकाती है

बनके हमेशा ठंडी छाया


रस्मों, रिवाजों, संस्कारों का 

सम्मान करतीं हैं मन से 

न खुद को भागीदार मानती है  

न लालच होता है पिता के धन से 


जो कोख जन्म देती है बेटों को 

उसी कोख से वह जन्म लेती है 

समझाया जाता है जब कि तू है परायी 

बस वापस मुस्कुरा देती है


बड़े होते ही घर दुसरे के 

वह जब हिस्सा बन जाती है

"बहू" का ठप्पा लग जाता है

अलग रंग में रंग जाती है


सखियाँ छूटती हैं छूटता है घर 

खेलनी होती है अब नई बारी

नई दुनिया की नई रीतियाँ

होती हैं अब निभानी  


जिस घर जाती है वह अब 

पति का घर कहलाता है

यहाँ भी रहती है वह परायी 

वक्त यही समझाता है


अब पीहर होता है पराया  

और पराया है ससुराल भी 

पहचान खुद की ढूंढ़ती रहती है

वह अपने पूरे जीवनकाल ही 


यह कैसी प्रथा है समाज की 

जो युगों से चली आ रही है

स्त्री हर हाल में क्यों है परायी 

यह पहेली है जो न कभी बुझाई गई है।


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