मान्यता
मान्यता
खुली किताब का अधूरापन
बंद का रहस्य,
तोते तो पैदा ही होने थे
ज्ञान के प्रसार को।
बीत गयी सदियां अब,
अहम सहज भी हो चला।
वृक्ष सदा ही फलते रहते
सहते अपने भार को ।।
अब रगड़ो पत्थर
आग जलाओ,
तरुण - शृंगार क्यों ?
भस्म मृदा की मार को।
खुली किताब का आकर्षण
बंद की सादगी,
अन्वेषण की हत्या होगी
मांद के त्यौहार को ।।