प्रत्यंचा
प्रत्यंचा
मैं प्रत्यंचा चढ़ाये बैठा हूँ ,
कि घायल कर दूँ सूर्य को।
और उसकी गर्म बूंदें ,
क्लांत जीवन को उत्तेजित करें।
मैं बिलोता हूँ समुद्र,
कि कहीं कोई रत्न है।
किन्तु फिर पंक्ति और छल,
क्या पहुंचे हो कभी ?
बूंदों की गहराई में,
जहां शब्दों के भ्रूण हैं।
अर्थ अब भी ,
चील की पीठ पर बैठे हैं।
मैं प्रत्यंचा चढ़ाये बैठा हूँ,
कि चील दिखाई दे।