महजबी
महजबी
तू महजबी ओ नाज़नीन वो चाॅंद भी शरमा रहा,
ओ दिलरूबा जाने जिगर ये चांद जब मुस्का रहा,
तेरे रूप से फीका हुआ वो चाॅंद अब पछता रहा,
शायद उतरकर आज वो तुमसे ही मिलने आ रहा।।
तू महजबी ओ नाज़नीन वो चाॅंद भी शरमा रहा,
ओ दिलरूबा जाने जिगर ये चांद जब मुस्का रहा,
तेरे रूप से फीका हुआ वो चाॅंद अब पछता रहा,
शायद उतरकर आज वो तुमसे ही मिलने आ रहा।।