Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Shweta Maurya

Abstract Inspirational

4  

Shweta Maurya

Abstract Inspirational

मन-मंजिल

मन-मंजिल

3 mins
402


हार गई मैं अपनी हर मंजिल से जिंदगी में खुद को सफल बनाने को,

फिर भी मन नहीं माना उम्र के पड़ाव में भी कोशिशों को जारी रखने से,

सहेली ने कहा ,खुद पर कि हार जिसमें वह काम नहीं करती मैं,

पर मेरा नजरिया कुछ अलग था कि हारने से क्या डरना कोशिशों को करने से पहले परंतु,

वह जीत गई अपनी मंजिल में मैं हार गई अपनी मंजिल, पर मन के हारे हार है

यह सोच, जुनून फिर जागता है अपनी जिंदगी सफल बनाने को।


छुप-छुप के रो रो कर रातों में हार के गम को जिंदगी से निकाला है,

सोच नहीं कभी नकारात्मक फिर भी मंजिल और मुकाम ने मुंह मोड़ लिया।

पूछती हूं क्या खता हुई इस बंदी से ईश्वर जो मन मंजिल का सपना हर बार टूट गया ,

टूटे कांच जैसे मन को बटोर, फिर कुछ शुरू करने की सोच ने हौसला दिया,

पर चुभन आज भी महसूस होती है हर पल।

क्या होगी इस पर रहम नजर और न्याय की आस पूरी मेरी।

आवाज को ही ताकत माना मैंने अपने हौसलों को उड़ान देने को।


बहुत था, भरोसा खुद पर दूसरे हमारी मेहनत देख प्रेरित होते-होते सफल हो गए

और हम कांच जैसा टूटा मन- मंजिल सफर अपने हाथों में लेकर रह गए।

नहीं रहा साथ अब किसी दोस्त का ,

पर हारे का सच्चा साथी उसका अपना परिवार यह हम मान गए

फिर विचार आया आवाज भले ना पहुंचे ईश्वर तक,

पर दुनिया को अपनी आवाज का दम दिखाने का हौसला तो हम रखते हैं।


नहीं मिली कलम की ताकत इन हाथों को तो क्या हुआ,

दुनिया को प्रेरित करने का जिम्मा हम लेते हैं।

इंसान इंसान बराबर इंसान ही होता है ईश्वर नहीं,

पर खुद को सम्मानित बनाने और दूसरों की प्रेरणा बन जाने को,

जीतेंगे जिंदगी की हर वह जंग जो तोड़ देती है इंसान को,

 नहीं जिंदगी खत्म करने का ख्वाब सपने में भी मन में लाया मैंने।

बताती हूं दुनिया को की यह मजबूती मिली

मुझे मेरे मां-बाप के लालन-पालन से संघर्षों में भी,

ना मैं भूली ना मेरा परिवार एक दूजे कोो

, फिर भी मन क्यों रह-रह कर घबराता है,

दूसरों की जीती हुई मंजिल,उनके मुकाम देख

शायद अपनी हार भी इतनी बड़ी लगने लगी,

जितनी उन लोगों की पाई हुई मंजिल,

यहीं आकर मन चूर-चूर हो जाता है,

क्या खूब कहा था,


किसी ने की संघर्षों को पार कर मंजिल मिलती है

पर संघर्षों में तो मेरी कई मंजिल भी बदल गई।

मैं पहाड़ तोड़ने का हौसला रखने वाली आज पहाड़ के नीचे ही कैसे दब गई।

पूछती हूं खुद से कौन सा कदम लड़खड़ाया।

क्या मंजिल पाने का सफर यहीं टूट जाएगा,

समय रेत की तरह फिसल रहा,

जिंदगी रूप बदलने को तैयार खड़ी,

किसी ओर जाऊं मैं मझधार में फंसी सोचती हूं मैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract