नवजात चिड़िया
नवजात चिड़िया
तिनका -तिनका जुटा आशियाना बनाती चिड़िया,
नहीं मात्र कार्य ये एकल,
नर -मादा दोनों की भूमिका होती है।
जब एक चिड़िया आती मेरी वाटिका में तिनका लेकर,
मन खुश हो जाता है,
कहीं दूर न चली जाये आशियाना बनाने को ,
ये सोच मन घबराता है,
इस घबराहट को संबल देने को शांत भाव ही मन में आता है।
दूर रहकर धैर्यपूर्वक देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।
नवजात चिड़िया के आने से पहले,
नर -मादा चिड़िया मिलकर करते निर्माण नीड का।
क्या खूब कला पाई है, नीड बनाने की,
देख आश्चर्य चकित इंसान,
नहीं हाथ इसके,
फिर भी टांका लगती,ऐसा मानो जैसे इंसान ने सिया हो कपड़ा।
पत्तों के बीच झुरमुट में ये सब घटित होता है।
जब तैयार हो जाता आशियाना, तो मादा चिड़िया की भूमिका अहम हो जाती है,
देती चिड़िया अण्डे तीन हैं,
ये रंग बदलते धीरे -धीरे,
मां की गर्मी पाकर हो जाते बड़ी चित्तीदार हैं,
और फिर एक दिन इसमें से चह-चहाती चिड़ियां देख हमारा मन प्रफुल्लित हो जाता है।
रोज -रोज मौका लगा जाते हम बच्चे वाटिका में चिड़िया का नीड झांकने को,
माता -पिता डराते नही जाना है देख ने,
आंख पर हमलावर होती है चिड़िया डर जाते थे सुनकर।
फिर नही मानता मन,तो फिर साहस जुटा कर मौका देखकर नहीं है जब कोई, चिड़िया के नीड में झांक आते हैं।
मानो अपने जीवन की सब से बड़ी खुशी नवजात चिड़िया देख पा जाते हैं।
नीड के पास जब हलचल होती है,नवजात चिड़िया मां समझ कर,
सिर उठा के पूरी हिम्मत से मुंह बाते(खोलते) हैं,की देगी मां दाना पर वहां हम होते ,
सो वे निराश मन से थक के फिर सो जाते हैं,
फिर जो चिड़िया चह- चहाती डर के हम भाग जाते हैं।
नहीं हाथ लगाते कभी,
की भाग जायेगी चिड़िया, तो नवजात भूखे रह जायेंगे।
फिर एक दिन जब पूरे पंख निकल जाते इनके,
पंख फड़ -फाड़ा के उड़ना सीखते ये नीड में,
और फिर एक दिन पंख पसार उड़ जाते हैं।
डाली -डाली बैठकर चिड़िया नवजातों को खतरे का भान करती है और जीवन रक्षक नियम सिखाती है।
अब आता उम्र का वह मोड़ जब,चिड़िया चुनमुन सब अपना-अपना बसेरा बनाने को फुर्र से उड़ जाते हैं।