टिकोरा
टिकोरा
चलो चलें टिकोरा बिनने,
हम बच्चों के नन्हे हाथ,
नन्हे पांव और नन्ही- नन्ही आंखें देख लेती ,
तब से जब सरसों भर का होता आम का टिकोरा।
तब से बन्ध जाती आस हमें,
रोज पेड़ के 40 चक्कर लगाती हम नन्हे बच्चों की टीम।
रोज जाकर पेड़ को निहारते सिर ऊपर उठाकर।
देखा है हमने पेड़ को धूप में लू के थप्पेड़ों को सहते,
वर्षा से खूब भीगते,
आंधी ने खूब झकझोरा।
तब-तब हम बच्चों ने,
अपने नन्हे-नन्हे हाथों से टिकोरा खूब बटोरा।
हमें धूप-धूल की परवाह नहीं,
कपड़े खराब होने की परवाह नहीं हमें तो टिकोरा चाहिए।
हम मनाते आंधी आए,
टिकोरा बस हमको मिल जाए।
हाथ जल्दी भर जाते सिर्फ दो-चार से,
फिर क्या था जमीन पर पटरे टिकोरों को भर लेते कुर्ते और फ्रॉक में।
नहीं डर किसी को पकड़े जाने का,
नहीं ज्ञान की पेड़ नहीं हमारा,
पर फिर भी टीकोरों पर
पूरा हक मानो हमारा।
जब किसी की आवाज सुनाई दी कानों में,
तब चले दौड़-भाग कर अपने-अपने घर को,
नन्हे-नन्हे पांव से।
फिर देखा कोई नहीं अब देख रहा ,
फिर आए दबे पांव डाल हिलाने को,
हमारी टोली लूट लेती टिकोरों को।
फिर किसी के आने की आहट ,
दौड़ लगाते घर को।