" नजदीकियाँ "
" नजदीकियाँ "
बढ़ गई नजदीकियाँ तो ,
चाह भी बढ़ने लगी !!
राह रोके जो खड़े थे ,
आज अपने साथ हैं !
कल तलक थी दूर ख़ुशियाँ ,
आज खिलते गात हैं !
नयन की भाषा अनूठी ,
प्रीत को गढ़ने लगी !!
पल कहाँ खामोश अब हैं ,
भेद मन के खोलते !
आज साथी बन गये हैं ,
अब यहाँ रस घोलते !
चाह तितली बन उड़ी है ,
शिखर को चढ़ने लगी !!
हौंसला तुमने दिया है ,
हाथ में ले हाथ को !
और न्यौता दे दिया है ,
जगमगाती रात को !
प्रेम की पाती मधुर सी ,
याद में जड़ने लगी !!
साथ पाया है अगर तो ,
यह मधुर संयोग है !
प्रेम को कोई कहे ,
यह अनूठा रोग है !
आज गुमसुम हैं अँधेरे ,
आस जो लड़ने लगी !!