" नज़र के तीर "
" नज़र के तीर "
जो जिगर को भेद देते ,
वो नज़र के तीर हैं !!
चाहता नजदीकियाँ मन ,
बिन बुलाए पास आते !
प्यार में आकंठ डूबे ,
राह अपनी भूल जाते !
दूर से ही वे निगाहें ,
तोड़ती बस धीर हैं !!
इक हँसी का ही सहारा ,
जंग लड़ने को बहुत है !
चाहतें बढ़ने लगी जो ,
दिल तलक अपनी पँहुच है !
पल हुए आतुर मिलन को ,
कट गई सब पीर है !!
पास मिल बैठे अगर तो ,
तय हुए आधार अपने !
रंग भरने लग गए हैं ,
हमने देखे थे जो सपने !
झूमती ख़ुशियाँ लगे हैं ,
नहीं नयनन नीर है !!
मन हुआ है बावरा सा ,
छवि अनूठी जो बसी है !
हम बँधे हैं पाश से जो ,
प्रीत की डोरी कसी है !
हम भुलाए रहे सुध बुध ,
दशा जो गंभीर है !!