पहले बोलते थे तुम्हारे शब्द
पहले बोलते थे तुम्हारे शब्द
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पहले बोलते थे तुम्हारे शब्द
सुनता था मेरा मौन
उन स्वरों में, मुखरित उपालंभ
कटघरों में,
खड़े होकर भी...
टूटा नहीं, मेरा मौन
धीरे धीरे चुकने लगे
तुम्हारे शब्द
होने लगे अर्थहीन...
सब संदर्भ-प्रसंग
और मेरा मौन-
धैर्य और त्याग की,
लपटों में तपकर
निखरता रहा, सोने सा!
अब चुप हैं, तुम्हारे शब्द ...
और बोलता है मेरा मौन !!