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Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत-२५९; ऊषा अनिरुद्ध मिलन

श्रीमद्भागवत-२५९; ऊषा अनिरुद्ध मिलन

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राजा परीक्षित ने पूछा, मुनिश्वर

मैंने सुना है कि विवाह अनिरुद्ध का

जिस कन्या के साथ हुआ वो

बाणासुर की पुत्री थी ऊषा।


इस प्रसंग में युद्ध हुआ था

भगवान कृष्ण और शंकर जी का

विस्तार से सुनाइए आप मुझे

ये कब और कहाँ हुआ था।


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

जिस बलि ने वामन भगवान को

सारी पृथ्वी दान थी कर दी

पुत्र थे उनके पूरे सौ।


सबसे बड़ा बाणासुर उनमें

और औरस पुत्र ये बलि का

भगवान शिव की भक्ति में

सदा वो रत रहता था।


प्रतिज्ञा उसकी अटल होती थी

सचमुच धनी था अपनी बात का

उन दिनों शोणितपुर में

बाणासुर राज्य करता था।


भगवान शंकर की कृपा से

इंद्रादी देवता सेवा करें उसकी

और एक हज़ार भुजाएँ थीं

उस बली बाणासुर की।


एक दिन भगवान शंकर जब

तांडव नृत्य कर रहे थे

प्रसन्न किया शंकर को उसने

बाजे बजा अपनी भुजाओं से।


शंकर जी कहें, कोई वर माँगो

तब बाणासुर ने कहा ये

रक्षा मेरे नगर की करते हुए

आप सदा यहीं रहा करें।


एक दिन बल पोरुष के घमंड में

चूर हो बाणासुर ने शंकर के

चरणों में प्रणाम किया और

वो कहने लगा था उनसे।


‘ देवाधिदेव, चराचर जगत के

आप गुरु और ईश्वर हैं

मेरे लिए भाररूप ही

आपने मुझे जो भुजाएँ दो हैं।


क्योंकि त्रिलोकि में आपको छोड़कर

मेरी बराबरी का कोई योद्धा

जो मुझसे लड़ सकता हो

कोई भी दिखाई ना देता ‘।


बाणासुर की प्रार्थना सुनकर

क्रोध आ गया शंकर जी को

कहा मूढ़, जब ध्वजा गिरेगी तेरी

उस समय मिलेगा तुमको।


मेरे समान ही योद्धा एक जो

युद्ध में तेरा घमंड चूर करे

बिगड़ी बुद्धि थी बाणासुर की

हर्ष हुआ ये बातें सुनकर उसे।


अपने घर को लौट आया वो

उस युद्ध की प्रतीक्षा करने लगा

उसके बल वीर्य का ही

जिससे नाश होने वाला था।


बाणासुर की एक कन्या थी

ऊषा उस कन्या का नाम था

कुमारी ही थी अभी वो

एक दिन सपने में उसने देखा।


परम सुंदर अनिरुद्ध के साथ में

समागम हो रहा है उसका

आश्चर्य की बात तो ये कि

उसने उन्हें सुना या देखा ना था।


स्वपन में ही ऊषा बोल पड़ी

‘ प्राणप्यारे , तुम कहाँ हो ‘

नींद टूटी तो लज्जित हुई देखकर

कि स्त्रियों के बीच में थीं वो।


बाणासुर का मंत्री कुम्भारण

चित्रलेखा उसकी एक कन्या

ऊषा, चित्रलेखा थी सहेलियाँ

चित्रलेखा ने ऊषा से कहा।


‘ राजकुमारी, मैं देखती हूँ कि

अभी नही हुआ पाणिग्रहण तुम्हारा

फिर तुम किसे ढूँढ रही हो

स्वरूप तुम्हारे मनोरथ का क्या।


ऊषा बोली, ‘ सखी, मैंने स्वपन में

बड़े सुंदर नवयुवक को देखा

नेत्र कमलदल के समान और

शरीर का रंग सांवला सांवला।


शरीर पर पीला पीताम्बर

स्त्रियों का चित चुराने वाला जो

ना जाने कहाँ चला गया

अधरों का रस मुझे पिलाकर वो।


मैं तड़पती ही रह गयी

और ढूँढ रही हूँ उसी को

चित्रलेखा ने कहा, ‘ हे सखी

तुम तनिक भी चिंता मत करो।


तुम्हारा चितचोर कहीं भी होगा

और पहचान सकोगी तुम उसे

तो तुम्हारी विरह व्यथा मिटा दूँगी

ले आऊँगी उसे वहाँ से।


चित्र बनाती हूँ मैं और

पहचानकर तुम बताना मुझको

ये कह चित्रलेखा बनाए

देवता, मनुष्यों के चित्रों को।


मनुष्यों में वासुदेव, बलराम और

कृष्ण आदि के चित्र बनाए

ऊषा बड़ी उत्तेजित हो गयी जब

प्रद्युमण का चित्र देखा उसने।


अनिरुद्ध का चित्र जब देखा तो

लज्जा से हो गया सिर नीचे

यही मेरे प्राणबल्लभ हैं

मुस्कुराकर कहा चित्रलेखा से।


चित्रलेखा तो योगिनी थी

जानती थी कृष्ण के पोत्र हैं ये

आकाशमार्ग से द्वारका नगरी

पहुँच गयीं वो उसी रात में।


अनिरुद्ध जी पलंग पर सो रहे

उन्हें उठाकर योगशक्ति से

चित्रलेखा ले आयी उनको

शोणितपुर, ऊषा के पास में।


सेवा शुश्रूषा करके अनिरुद्ध की

ऊषा उनसे विहार करने लगी

ऊषा के वश में उनका मन, इसलिए

अनिरुद्ध भूले थे अपने को ही।


उन्हें इस बात का पता ही ना चला कि

कितने दिन बीते यहाँ आए हुए

कुंवारापन नष्ट हो गया ऊषा का

अनिरुद्ध जी के साथ में रहते।


शरीर में कुछ बदलाव हो रहे

बहुत प्रसन्न रहने लगीं वो

हाव भाव देखकर उनके

भनक लग गयी पहरेदारों को।


समझ गए कि हो रहा है

सम्बन्ध इसका किसी पुरुष से

जाकर बाणासुर के पास में

उन्होंने निवेदन किया उससे।


रंग ढंग से आपकी कन्या के

कुल को बट्टा है लगने वाला

रात दिन हम पहरा देते हैं

ना जाने ऐसा कैसे हो गया।


बाहर का मनुष्य इस कन्या को

देख भी नही है सकता

बाणासुर ने जब ये सुना कि

कन्या का चरित्र दूषित हो गया।


हृदय में उसके बड़ी पीड़ा हुई

ऊषा के महल में आ गया

देखा कि ऊषा के साथ में

अनिरुद्ध जी बैठे हुए वहाँ।


सुंदर कोई और नही था

अनिरुद्ध जी जैसा त्रिभुवन में

चोसर खेल रहे उस समय वह

अपनी प्रियतमा ऊषा के साथ में।


बाणासुर बहुत चकित हो गया

उसे देखकर संग ऊषा के

बाणासुर पहुँचा था वहाँ

शस्त्र और सेना को साथ ले।


लोहे का एक परिध उठा लिया

और सैनिक सब जो आए थे

अनिरुद्ध ने उनको मार गिराया

बाक़ी सब वहाँ से भाग गए।


बाणासुर क्रोध से तिलमिला उठा

नागपाश से उन्हें बांध लिया

शोक से विह्वल हो रोने लगी

ऊषा ने जब ये था सुना।


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