सिसकती रूह
सिसकती रूह
कुछ तो बाकी है अब भी मेरे अन्दर
जो कहना चाहती
हूं पर लफ्ज खत्म हो चुके हैं।
तू चला गया तो क्या हुआ,
तेरे वजूद का एक हिस्सा
अब भी मौजूद है कही दिल के
अंधेरे कोने में मेरे।
हॉ जी तो रही हूं अब भी,
पर ज़िंदा नहीं हूँ,
सिर्फ सांसें आ जा रहीं हैं
और धड़कन चल रही है
मेरी जिंदगी तो तुम
अपने साथ ही ले गए,
जो तुम्हारी ही थी.
इन खामोश आँखों की
ज़बान काश तुम समझ लेते,
तुम्हें मेरा हंसता हुआ चेहरा तो दिखा
मगर सिसकती हुयी रूह नहीं।