तुम्हारी जीवन गाथा
तुम्हारी जीवन गाथा
अब कितना ढकोगे जज्बात अपना
चल आज मैं तुम्हारी जीवन गाथा को संंधि विच्छेद करती हूं ।
मेरा हाथ पकड कर जो बैठो मेरे पास
तुम्हारा जीवन शैली को अपनी डायरी में उतार लूं।
मुझेे देख के मुस्कुरा दो एक बार तो
तेरेे मुस्कान को मैं अपना श्रृंगार बना लूं
मेरी आंखोंं में जो तुम देख लो एक बार
दुनिया देखने की लालसा मिटा दूं।
अपने जज्बात को जो प्रकट करो तुम
अपनी कविताओंं में उनका वर्णन कर दूं।
तुम बेकार जमाने की बात में खुद को बुरा मानते हो
तुम कहो तो तेरा हर गम खुद पर ले लूं।