विधवा
विधवा
किसी को आज सफेद जोडे में लिपटा देखकर आई हूँ,
उसकी बेरंग जिंदगी से ज़हन में हजारों सवाल समेट कर लाई हूँ,
तितली-सी चंचल लडकी को,आज कोने में सिमटा देखकर आई हूँ
और जो ससुराल में कभी रानी बनकर गई थी,
उसे आज मैं नौकरानी की हालत में देखकर आई हूँ ,
और ये सब देखकर आज फिर मेरी कलम एक सवाल लिखती है,
क्यों नहीं पत्नी की मौत के बाद पति की हालत ऐसी दिखती है??
रंगों से प्यार करने वाली के हाथों से, सभी रंगों को छूटते देखकर आई हूँ,
पूरे घर को संभालने वाली को आज मैं पूरी तरह से टूटते देखकर आई हूँ,
जिसका चेहरा देखकर वो जीती थी -(2)
आज उसी की हार चढ़़ी फोटो को देखकर उसे अंदर ही अंदर घुटते देखकर आई हूँ,
और आँखों से दर्द इतना बहा दिया उसने,
कि आज मैं उसकी आँखों को आँसुओं से रूठते देखकर आई हूँ,
और ये सब देखकर आज फिर मेरी कलम एक सवाल लिखती है,
क्यों नहीं पत्नी की मौत के बाद पति की हालत ऐसी दिखती है??
आज उसके श्रृंगार ने उससे हर रिश्ता तोड़ दिया,
आज उसकी जिंदगी ने उसके सामने ही दम तोड़ दिया,
सात जन्मों का साथ निभाने वाला सात दिन भी साथ नहीं निभा पाया,
वादे तो कर गया वो, मगर उन वादों को पूरा नहीं कर पाया,
इसलिए खुद हमेशा के लिए सोकर, उसे रातों को रोने के लिए छोड़ गया,
अपनी जिंदगी को पूरा करके उसकी जिंदगी को हमेशा के लिए अधूरा छोड़ गया,
पर अब वो लडकी बहुत कुछ सहती है,
सुनती सब है वो मगर अब वो कुछ नहीं कहती है,
रूह कराह उठती है उसकी, जब उसे उसके पति की मौत का ज़िम्मेदार ठहराया जाता है,
और टूटकर बिखर जाती है वो जब उसके कदमों को उसके पति के लिए अशुभ बताया जाता है,
और ये सब देखकर आज फिर मेरी कलम एक सवाल लिखती है
क्यों नहीं पत्नी की मौत के बाद पति की हालत ऐसी दिखती है??
जब कसमें एक जैसी खाई दोनों ने,
जब रसमें एक जैसी निभाई दोनों ने,
तो पत्नी का ही लिबास क्यों बदलता है?
क्यों नहीं कभी कोई पति इन समाज की रीतियों की आग में जलता है?
क्यों औरत की ही जिंदगी बेरंग होती है?
क्यों नहीं कभी कोई रंग किसी मर्द से रूठता है?
और क्यों सिर्फ औरत की ही हँसी छिनी जाती है?
क्यों नहीं कभी किसी मर्द के ठहाको पर कोई सवाल उठता है?
और ये सब देखकर आज फिर मेरी कलम की स्याही में एक सवाल पलता है,
क्यों पत्नी की मौत के बाद पति का पहनावा नहीं बदलता है ?