Arunima Thakur

Others

4.8  

Arunima Thakur

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आधा प्लस आधा एक

आधा प्लस आधा एक

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अतुल रोज की तरह अपने विचारों में डूबा बैठा था । उसके दिमाग में हमेशा एक ही बात घूमा करती कि उसके जीवन का उद्देश्य क्या है ? हम क्यों जन्म लेते हैं ? क्या साधु महात्मा जो पूजा पाठ करते हैं क्या वह निश्चित ही भगवान को पा लेते हैं ? क्या भगवान को पाना ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य है ? ऐसी ही बिना सिर पैर की बातें । हाँ उसकी मम्मी बोलती, "वह पागल है। बिना सिर पैर की बातें सोचता है" । 

 मम्मी की याद से उसके चेहरे पर मधुर स्मित तैर गई । मम्मी पापा तो सबके ही प्यारे होते हैं पर उसके बहुत बहुत बहुत प्यारे है । वरना उसे अपनाने की कोई अवश्यकता नहीं थी। मम्मी पापा के लिए उसका पालन पोषण करना आसान ना था । उठना, बोलना, चलना सब सिखाना पड़ा। वह उसका हमेशा ध्यान रखते। बचपन से ही उसे विशेष ट्रेनिंग जो बातें अन्य बच्चे सीख लेते हैं, उसे सिखाए गए। 


हाँ ! उसके मम्मी पापा के पास उसे छोड़ देने का विकल्प था। वह उनकी इकलौती या पहली संतान नहीं है। उससे पहले उस से पाँच साल बड़ा भाई और दो साल बड़ी बहन है। फिर भी उन्होंने उसे चुना, इस बात पर उसे बहुत प्यार आता है, बहुत ही ज्यादा । उन्होंने कभी भी उसे उसकी क्षमताओं से अधिक करने के लिए दबाव नहीं डाला।

 

 उसे यहाँ बैठना बहुत पसंद है, समुद्र से बिल्कुल पास पहाड़ी नदी (खाड़ी) पर लगकर एक पुल पर, जो उसके शहर से दूसरे गाँव में जाता है । दिन में यहाँ काफी आवागमन रहता है। पर रात को पूरा सुनसान, सिर्फ समुद्र की लहरों का शोर और ज्वार के साथ चढ़ता हुआ या भाटा के साथ उतरता हुआ पानी, सामने दिख रहें मछुवारों की नावें उन पर जलती रोशनी और नीचे हिलोरे मारती लहरें उसके दिल में घुमड़ती आवाजों से होड़ लगाती। 


 वह उठकर चलने को हुआ। पुल के (दोनों ओर बने) फुटपाथ पर खड़े होकर उसने अपने बालों में हाथ फिराया । इधर उधर एक नजर देख कर सड़क पार कर अपनी एक्टिवा के पास पहुँचा । सामने कुछ दूरी पर एक साया था । वह सिहर गया। पुल पर रोशनी नहीं थी, पर वह साया पुल की रेलिग से सट कर खड़ा था। कौन हो सकता है ? कोई उसके जैसा एकांत चाहने वाला ? अपने अंदर के शोर को लहरों के शोर से शांत करने वाला ! कोई गाड़ी नहीं दिख रही है । शहर से इतना बाहर, क्या वह चलते हुए आया है ? इस वीराने में चलते हुए आना..... अतुल ने सिर को एक ओर झटका, जाने दो मुझे क्या ? वह पुल के लगभग इस तरफ था। वह जो भी था, उसे शायद अतुल नहीं दिख रहा था । उसने एक्टिवा स्टार्ट की । एक्टिवा की रोशनी में भी उस साएँ को किसी और के होने का एहसास नहीं हुआ । वह साया पुल की रेलिग से टिक कर खड़ा था और नीचे की ओर देख रहा था । इतने अंधेरे में वह नीचे क्या देखने की कोशिश कर रहा है ? वह उसके बगल से हॉर्न बजाते हुए निकला पर फिर भी उस साए ने किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं की । बस थोड़ी ही दूर जाने पर अतुल का मन ही नहीं हुआ उसे इस वीराने में अकेले छोड़ने का । उसने अपनी एक्टिवा घुमा ली। तभी उसके दिमाग में ख्याल आया, कहीं यह किसी गिरोह का काम तो नहीं है? लूटने के लिए। पर नहीं, वह तो काफी देर से वहाँ बैठा था। उसकी आँखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो गई थी । उसने देखा कि वह साया रेलिग के ऊपर चढ़ने का प्रयास कर रहा है । अरे नहीं, यह जो कोई भी है यह तो खुदकुशी का प्रयास कर रहा है । उसने तुरंत एक्टिवा की बत्तियां बुझा दी कि कहीं किसी के होने का आभास पाकर.... I  


एक्टिवा रोककर अतुल उस साए की तरफ दौड़ा। वह बिल्कुल ठीक समय पर पहुँच गया । इससे पहले वह साया रेलिग पर चढ़कर कूद पाता अतुल ने उसे पकड़कर नीचे इस तरफ गिरा लिया । इस गिरने के चक्कर में दोनों ही कंक्रीट की सड़क पर गिरे। अतुल के तो हाथ छिल गए थे । वह साया भी जोर से दर्द से कराहा। अरे यह तो किसी लड़की की आवाज है ,यह कोई लड़की है ?


"कौन हो तुम ? छोड़ दो मुझे", वह लड़की चिल्लाई । अतुल उसे पकड़े पकड़े बोला, "क्यों क्या फर्क पड़ता है ? तुम तो मरने ही जा रही थी ना"। 

"देखो प्लीज छोड़ दो मुझे" वह साया जो कि लड़की थी गिड़गिड़ायी। 


 "अब क्यों डर रही हो ? जब मरने का निर्णय लिया था तब डर नहीं लगा था ? तुम लोग भी ना अपने माँ बाप के बारे में जरा भी नहीं सोचते हो कि उन पर क्या गुजरेगी। बस किसी ने धोखा दिया और तुम चल देते हो मरने" उसे छोड़ते हुए अतुल बोला I 


वह लड़की सिर को सहलाते हुए बोली, "ऐ हैलो मिस्टर ऐसा कुछ नहीं है, जैसा आप सोच रहे हैं" I 


क्या कुछ नहीं है ? तो क्या आप डाइविंग की प्रैक्टिस के लिए पुल की रेलिंग पर खड़ी हुई थी ? 


 "नहीं मुझे किसी ने धोखा नहीं दिया है। मुझे तो मेरे मम्मी पापा ने ही धोखा दिया, मुझे अंधेरे में रखा। आज उन्होंने इतनी बड़ी बात बताई है कि मेरे अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है", वह सुबकते हुए बोली।


"क्या हुआ ? क्या तुम्हारी शादी उन्होंने बचपन में ही तय कर दी थी अपने किसी दोस्त के लूले, लंगड़े, अनपढ़ बेटे से"। 


वह लड़की सिर घुमा कर अतुल को घूरते हुए बोली, "जो भी हो, वह मैं आपको क्यों बताऊं" ?


अतुल बोला, "कभी-कभी जब हम अनजान अपरिचित के सामने अपनी परेशानी बयां करते हैं, दिल खोल देते हैं तो दिल हल्का हो जाता है I वैसे भी ना तो तुम मुझे देख पा रही हो, ना मैं तुम्हें । ना ही हम एक दूसरे को जानते हैं । तो हो सकता है बात करने से तुम्हें लगे, तुम्हारी परेशानी इतनी बड़ी हो ही ना जितनी बड़ी तुम्हें लग रही है" । 


"हाँ, वाह ! क्या खूब कही ! मेरी परेशानी, परेशानी नहीं है । अरे तुम्हारे लिए कहना आसान है" वह गुस्से में झुंझलाती हुई बोली। 


 "नहीं मैं कह सकता हूँ ! क्योंकि मेरी अपनी कुछ परेशानियां हैं । मैं रोज उन्हीं का हल खोजने यहाँ आकर बैठता हूँ। मेरे अस्तित्व की, मेरे वजूद की, मैं तुम्हें क्या बताऊं, तुम नहीं समझ पाओगी"।  


"अच्छा तो तुम पहले बताओ फिर मैं बताऊंगी" । 


 "जी नहीं ! मैंने अपनी परेशानी से हार मान कर मौत का रास्ता नहीं चुना था । तुम बताओ अपनी परेशानी, फिर मैं वादा करता हूँ, मैं भी अपनी परेशानी बताऊँगा। वैसे देखो अभी रात काफी हो गई है। मेरे घरवाले मेरा इंतजार कर रहे होंगे और तुम्हारे भी, तुम्हारे ना मिलने पर परेशान होंगे। कल समुद्र तट पर मिलते हैं, शाम को छहः बजे I 


पर हम एक दूसरे को पहचानेंगे कैसे ? 


देखते हैं अगर हमने पहचान लिया तो ही हम एक दूसरे को अपनी परेशानी बताएंगे नहीं तो ....


नहीं तो क्या ...


"नहीं तो तुम प्रॉमिस करो तुम खुदकुशी का विचार मन में नहीं लाओगी और हाँ अगर कल समुद्र तट पर ना पहचान पाओ तो मैं यहाँ रोज इसी समय आता हूँ, एक बार मिलना जरूर" । 


दूसरे दिन समुद्र तट पर बैठा हुआ अतुल बड़े मनोयोग से सूर्यास्त को देख रहा था । समुद्र तट पर बहुत ही भीड़ थी । वह भीड़ देखकर सोचने लगा यह दुनिया भी ना किसी को अस्त होते हुए देखने कितने चाव से आती है । उगते सूर्य को सब अर्ध्य देते हैं । डूबते सूरज को कोई प्रणाम भी नहीं करता, कि तुमने सारा दिन हमें प्रकाश, ऊष्मा दी, इसके लिए आभार। जब सूर्य पानी की सतह, क्षितिज को छूने लगा तो अतुल ने हाथ जोड़कर सूर्य को प्रणाम किया । 

हाँ अतुल उस लड़की से मिलने गया था । पर वह इधर-उधर नहीं देख रहा था । इतनी भीड़ थी । उसे मालूम था वह आएगी भी तो उसे ढूंढने की, उससे मिलने की कोशिश नहीं करेगी। वैसे समुद्र तट पर सिर्फ सप्ताहांत के दिनों में ही भीड़ रहती है पर आज कोई त्यौहार होने के कारण ज्यादा भीड़ थी । 


तभी एक लड़की आकर उसके पास बैठ गई और बैठते हुए बोली, "देखा पहचान लिया ना"। 


अतुल ने उसकी ओर एक नज़र डाल कर मुस्कुराते हुए बोला, "अच्छा तो एक काम करना । अपनी सहेली को जाकर बोलना, वह चाहे तो मुझे आज रात को पुल पर मिल सकती है"। 


वह थोड़ी देर अतुल का मुँह देखती रहीं, फिर उठकर चल दी। 


रात को अतुल पुल पर रोज की तरह बैठा हुआ था, तभी एक स्कूटी आ कर रुकी। 

 "हाय"


अतुल कहीं अपने ख्यालों में ही गुम था I उसे उसके आने का एहसास ही नहीं हुआ। 


 वह अतुल की आँखों के आगे हाथ हिला कर चुटकी बजाते हुए, "मिस्टर हे मिस्टर..."


"मिस्टर नहीं अतुल, मेरा नाम अतुल है। तुम नहीं चाहती हो तो अपना नाम मत बताना"। 


"नहीं ऐसी बात नहीं है पर..."


"कोई बात नहीं" 


"वैसे तुमने मुझे पहचाना कैसे ? कि दरिया पर मैं नहीं मेरी सहेली थी"।  


"अरे पागल ! ओह सॉरी! पर तुम्हारे बाल छोटे हैं । तुम्हारा हुलिया टाम बॉय जैसा है और वह तो प्रॉपर लड़की थी। मेरा मतलब. . . ."।


"हाँ वही तो मैं प्रॉपर लड़की नहीं हूँ ना"।


 "अरे सॉरी ! मेरा मतलब वह नहीं था"।

 

 "पर मेरा मतलब वही है । मैं पूर्ण स्त्री नहीं हूँ"।  


"तुम स्त्री कैसे हो सकती हो ? तुम तो मुश्किल से सत्रह अठरह साल की लड़की हो । कौन सी क्लास में पढ़ती हो ? 


"मैंने इसी साल ट्वेल्थ की परीक्षा दी है । मैं लड़की हूँ पर कभी स्त्री नहीं बन पाऊंगी"।


 "यह क्या पहेलियां बुझा रही हो" ?


 "मेरे मम्मी पापा ने कल ही मुझे बताया। मेरी दोनों ओवरी नहीं है । मैं कभी माँ नहीं बन पाऊँगी । कभी पूर्ण स्त्रीत्व मातृत्व का सुख नहीं ले पाऊँगी। शायद कोई मुझसे शादी भी नहीं करेगा। कौन करना चाहेगा उस लड़की से शादी जो कभी माँ नहीं बन सकती है" ? 


"बस इतनी सी बात"


 "इतनी सी बात ..!" वह झुंझलाते हुए बोली, "यह तुम्हारे लिए इतनी सी बात है"। 


हाँ बहुत सारी स्त्रियों को बच्चे नहीं होते, ओवरी होते हुए भी, तो क्या वह पूर्ण नहीं कहलाती है ? अरे माँ के मातृत्व का सुख तो बच्चा गोद ले कर भी पा सकती हो और अब तो ओवरी का ट्रांसप्लांट भी होता है"।  


"उसके लिए बहुत पैसे लगेंगे । वैसे भी ओवरी ट्रांसप्लांट तब करते हैं जब किसी की ओवरी खराब हो जाती है I मेरे में तो उसके लिए जगह ही नहीं है। मुझे शायद किसी विधुर से ही शादी करनी पड़ेगी। तुम सोचो तो कैसे एक लड़की के अरमान होते हैं, वह सब तो कभी पूरे नहीं हो पाएंगे ना । काश जब मेरे मम्मी पापा को पता चला था तभी उन्होंने मुझे मार डाला चाहिए था"। 


"कैसी पागलों जैसी बातें कर रही हो ? क्या सिर्फ शादी और बच्चा ही पूर्णता प्रदान करता है ? अरे कुछ भी करो जीवन का ध्येय बनाओ । बहुत सारी अविवाहित स्त्रियों ने भी समाज में नाम कमाया है। मातृत्व का इतना ही शौक है तो सड़क के अनाथ बच्चों पर अपना लाड़ लुटाओ और वैसे भी मुझे लगता है कोई तो समझदार लड़का होगा जो तुम्हें तुम्हारी कमी के साथ स्वीकार करेगा। तुम अभी से मायूस क्यों होती हो "? 


"अच्छा कोई समझदार लड़का ! तो फिर तुम ही क्यों नहीं । क्या तुम मुझे स्वीकार कर लोगे" ?


 म् मम्‌ मैं मैं मैं . . .  


"अब देखो कैसे बकरी बन गए । क्यों बोलती क्यों बंद हो गई तुम्हारी"? 


"मैं क्या कहूँ ? बोलती बंद नहीं हुई है। पर मैं कुछ बोलूंगा तो तुम्हारी बोलती बंद हो जाएगी । शायद तुम मेरे बगल में बैठना भी पसंद ना करो" । 


वह व्यंग्य से मुस्कुराकर बोली, "अच्छा वह क्यों ? क्या तुम्हें एड्स है" ? 


"अरे नहीं मेरी माँ ! मेरी अपनी कुछ सीमाएं हैं" । 


"क्या.. . ? क्या सीमाएं ... ? मम्मी पापा नहीं मानेंगे ? जाति एक नहीं है ? देखा ! मैं ना कहती थी, कोई तैयार नहीं होता है। सिर्फ बातें बड़ी-बड़ी"। 


 "थम जा मेरी माँ ! शांत हो जा ! तुम मुझे जानती कितना हो ? क्या तुम किसी भी अनजान से शादी करने के लिए तैयार हो जाओंगी ? बगैर यह देखे कि वह क्या करता है ? कैसा है ? कमाता है कि नहीं ? क्या तुम्हारे लिए यह सब बातें कोई मायने नहीं रखती ? तुम्हें बस सिर्फ शादी करनी है एक लड़के से ? 


 "हाँ मुझे सिर्फ शादी करनी है, एक लड़के से"। 


"वही तो, मैंने बताया था ना कि हर एक की कोई न कोई मुश्किल होती है, कोई ना कोई परेशानी । मैंने अभी तुमसे अपनी परेशानी साझा नहीं की है।


 "हाँ कहा तो था। तुम्हारी परेशानी क्या मेरी परेशानी से भी बड़ी है" ? 

 "यह तो तुम सुनने के बाद ही बताना। अभी चलते हैं। देर हो रही है । घर पर सब इंतजार कर रहे होंगे" । 


"अच्छा और कल को तुम अगर आए ही नहीं तो ? कि कहीं मैं पीछे ना पड़ जाऊँ" । 


"मेरा फोन नंबर रख लो, तुम्हें लगता है तो , पर अभी चलो, कल मिलते हैं। हो सकता है कल मुझसे बातें करने के बाद तुम ही मुझसे मिलना पसंद ना करो। 

"ऐसा क्यों ? ऐसा नहीं होगा ..." ।


"ठीक है, देखेंगे! कल निर्णय लेना"। 


तीसरे दिन जब अतुल पुल पर पहुँचा तो वह पहले से वहाँ बैठी थी । 


अतुल आश्चर्य से बोला, "अरे आज तुम पहले आ गयी। क्या तुम्हें लगा था मैं नहीं आऊँगा या मेरी परेशानी जानने के लिए इतनी ज्यादा उत्सुक हो" ? 


वह झेंपते हुए बोली, "नहीं ऐसा कुछ नहीं है। शायद तुम्हें ही देर हो गई आने में"।  


अतुल हंसते हुए, "हाँ हो सकता है । वैसे मेरा यहाँ आना तो मेरे मम्मी पापा को मालूम है । तुम क्या बोल कर आती हो" ? 


"वह आँखे तरेर कर अतुल की ओर देखते हुए बोली, "मैं अपने मम्मी पापा से कुछ नहीं छुपाती। मैंने उस दिन की पूरी बात, तुम्हारा मुझे बचाना, सब मम्मी पापा को बता दिया था । उनको मालूम है, मैं यहाँ तुमसे मिलने आई हूँ"। 


"अरे वाह ! वेरी गुड ! मैं भी अपनी छोटी से छोटी बात मम्मी पापा के साथ साझा करता हूँ। उन्होंने हमें जन्म दिया है, पाला पोसा है, उन्हें अधिकार है हमारी छोटी से छोटी बात जानने का"। 


"वैसे मेरे मम्मी पापा तुमसे मिलना चाहते हैं । धन्यवाद कहना चाहते हैं" । 


"रुक जाओ, पहले मेरी बात सुन लो । शायद उसके बाद तुम और तुम्हारे घर वाले मुझसे मिलना पसंद नहीं करेंगे । हम जैसे लोगों को समाज में स्थान नहीं दिया जाता है। यह तो मेरे मम्मी पापा है कि उन्होंने मुझे ... पर पहले वादा करो कि हम एक दूसरे की बात सिर्फ अपने पास तक ही रखेंगे। ना मैं किसी को तुम्हारा सच बताऊँगा। ना ही तुम किसी को भी मेरा, अपने मम्मी पापा को भी नहीं । नहीं तो मेरी मम्मी पापा कि वर्षों की मेहनत बेकार जाएगी"। 


 "ऐसी भी क्या बात है" ? 


अतुल एक गहरी सांस लेते हुए, "मैं वह हूँ, जिसे समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है । जिनके जन्म पर माता-पिता का सिर शर्म से झुक जाता है । जिन्हें तुम्हारे सभ्य समाज में जीने का अधिकार नहीं होता है । जिन्हें जन्म लेते ही या कुछ वर्षों बाद परिवार, समाज से अलग करके उनकी बिरादरी वालों के साथ रहने को मजबूर किया जाता है"।  


"ओह.... मतलब तुम..."


 "हॉं मैं ना तो पूर्ण पुरुष हूँ ना ही स्त्री" |


" पर तुम लगते तो नहीं हो" । 


 "हॉं यही तो मेरे मम्मी पापा की मेहनत है कि उन्होंने मुझे हर पल सामान्य ढंग से बोलने चलने और जीने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने मुझे बचपन से ही धीरे-धीरे समझाया कि मैं अलग हूँ और मुझे कैसे सामान्य व्यवहार करना है । भगवान की कृपा भी रही थी मेरे महिला अंग विकसित नहीं हुए । नहीं तो शायद मम्मी पापा की मेहनत भी बेकार जाती" । 


वह अनजाने में थोड़ा दूर सरकते हुए, "ओह. . . .


"अतुल हँसते हुए बोला, "देखा पता चलते ही तुमने दूरी बनानी शुरू कर दी । तुम्हारा तो फिर भी इलाज संभव है पर मेरा कोई इलाज नहीं"।  

वह हड़बड़ाते कर अतुल का हाथ पकड़ते हुए बोली, "मुझे माफ कर दो । मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया"।  


"अतुल उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ाते हुए बोला, "नहीं कोई बात नहीं, पर ध्यान रखना तुम्हारी परेशानी से भी बड़ी परेशानियाँ है । मरना, जीवन का अंत करना, परेशानी का हल नहीं है"। 


वह अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोली, "अतुल मेरा नाम अणिमा है । मुझसे दोस्ती करोगे । 


"तरस खाकर दोस्ती का हाथ बढ़ा रही हो तो जाने दो । दोस्ती करना जरूरी नहीं है। बस कभी मरने का ख्याल मन में मत लाना और हाँ मरने के लिए यहाँ मत आना, नहीं तो मैं फिर से तुम्हें बचा लूंगा"।  


अणिमा हँसते हुए, "नहीं, वादा पक्का वादा, अब कभी मरने का विचार मन में नहीं आएगा । मैं कुछ बनने की कोशिश करूंगी । कुछ ऐसा करने की कि मुझे पूर्णता के लिए किसी की आवश्यकता ना पड़े ना पति की ना बच्चों की"।  


"नहीं यह भी गलत है, अकेले रहना। तुम कोशिश जरूर करना, शायद तुम्हें कोई तो अच्छा लड़का जरूर मिलेगा । चलो बाय । 


"रुको ना थोड़ी देर बैठते हैं"।


"नहीं अभी देर हो रही है I चलना चाहिए, बाय अपना ख्याल रखना।


चौथे दिन पुल पर अतुल थोड़ा उदास सा बैठा है । ऐसे लगता है वह किसी का इंतजार कर रहा है, पर दिखाना नहीं चाहता कि उसे किसी का इंतजार है। वह अपने आप से कहता है, अतुल तू जानता तो है तुझे किसी भी तरह की आशा नहीं करनी चाहिए और वैसे भी इस तरह की आशा तेरे लिए गलत है। पर एक दोस्त की तरह क्या बुराई है ? उसके अंतर्मन से आवाज आती है I 


 अतुल काफी देर बैठने के बाद उठकर चलने को होता है। एक्टिवा तक जाता है I एक्टिवा स्टार्ट करता है फिर बंद कर देता है । फिर पुल की रेलिंग तक आता है । नीचे की ओर झाँकता है। इधर उधर देखता है और अपने आप से बोलता है, "चलो अब वह नहीं आएगी"। 


ऐसे ही तीन-चार दिन बीत जाते हैं । एक दिन जब वह पुल की रेलिंग पकड़ कर खड़ा होता है और सामने अथाह समुद्र में हिलोरे मारती लहरों को देख रहा होता है। उसे अपनी पीठ पर किसी के हाथ के स्पर्श का एहसास होता है। वह चौक कर पीछे देखता है । पीछे आणिमा खड़ी मुस्कुरा रही होती है, "क्या बात है ? आज क्या खुदकुशी का इरादा किसी और का है"? 


अतुल कुछ नहीं बोलता है । अणिमा फिर से बोलती है, "क्या बात है ? नाराज हो क्या ? इतने दिन नहीं आयी इसलिए। क्या मेरा इंतजार कर रहे थे" ?


 अतुल रेलिंग के पास से हटकर आकर के फुटपाथ पर बैठ जाता है और कहता हैं, "क्यों मेरा मजाक उड़ा रही हो ? तुम्हें मालूम है और मुझे भी, किसी का इंतजार करने से मुझे कुछ हासिल होने वाला नहीं है" । 


अणिमा एक भौंह उठाकर, "अच्छा ! क्या दोस्ती का रिश्ता कुछ नहीं होता? क्या दोस्तों का इंतजार नहीं करते हैं ? तुम्हें मालूम है मेरे मम्मी पापा तुमसे मिलना चाहते हैं । मैंने उन्हें कैसे कैसे समझाया है। वैसे भी मिलने में क्या हर्ज है ? एक दोस्त की तरह मिल लो। मैं कहाँ तुम्हारे पीछे पड़ी हूँ शादी के लिए"। 

अतुल आश्चर्य से उसे देखते हुए। अणिमा कहती है, "तुम अपने मम्मी पापा की मेहनत को बेकार कर रहें हो। तुम भूल क्यों नहीं जाते कि तुमने मुझे कुछ बताया है। तुम ही कहते हों ना हमें सामान्य इंसानों की तरह जीना चाहिए। 


अतुल मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहता हैं, "ठीक है मैं अपने मम्मी पापा से पूछ लूंगा । अगर वह बोलेंगे तो आ जाऊंगा"। 


 "अतुल तुझे मालूम है मैंने जिंदगी में पहली बार अपने मम्मी पापा से कोई बात छुपाई है" । 


"इसके लिए सॉरी ! मेरी मजबूरी है । यह बात तो मेरे भाई बहनों को भी नहीं मालूम है । अगर तू किसी को बताएगी तो मेरे मम्मी पापा की मेहनत पर पानी फिर जाएगा" । 


"मैं हमेशा ध्यान रखूंगी। अपने मम्मी पापा से पूछ कर बताना । मैं फोन करुँगी । चल अभी चलती हूँ" । 


"थोड़ी देर बैठ ना, अतुल बहुत आग्रह के स्वर में कहता है। 


 "अच्छा जी ! आज देर नहीं हो रही ? अणिमा उसे चिढ़ाते हुए बोलती है। 


"चल फिर चलते हैं", अतुल उदासी से उठ खड़ा होता है। 


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कुछ दिनों बाद अणिमा के घर पर अणिमा, उसके मम्मी पापा और अतुल बैठे बात कर रहे है। अणिमा के पापा अतुल का हाथ पकड़कर बोलते है, "बेटा तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद, तुमने सिर्फ अणिमा की ही नहीं, हमारी जान बचाई है" । 


 अतुल संकोच से बोलता है, "अरे अंकल उसके लिए आप मुझे क्यों धन्यवाद दे रहे हैं ? यह तो भगवान की मर्जी ही थी। मैं तो सिर्फ एक निमित्त मात्र था"। 


 अणिमा के मम्मी पापा अतुल की तारीफ करते हुए कहते है, "तुम बातें बड़ी अच्छी करते हो। क्या कर रहे हो आजकल" ? 


"कुछ नहीं अंकल अभी तो बी.काम.कर रहा हूँ।


" पढ़ाई के बाद आगे क्या करने का इरादा है"? 


मुझे कला और साहित्य में रुचि है । जो मैं करना चाहता हूँ वह लोगों के लिए मायने नहीं रखता । इसीलिए मैं इस बारे में किसी से बात नहीं करता, क्षमा कीजिएगा"। 


 अणिमा की मम्मी चाय उठाकर अतुल को पकड़ाते हुए, "अरे कोई बात नहीं बेटा । हम तो बस यूं ही पूछ रहे थे । लो तुम चाय पियो" I 


 चाय पीते समय वो सब समसामयिक बाते करते रहें। चाय पीकर का मेज पर रख कर अतुल उठते हुए बोला, "अंकल आप से और आंटी से मिलकर बहुत अच्छा लगा। अब इजाजत दीजिए"।  


"हमें भी तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई । आते रहना बेटा" । 


जी आँटी नमस्कार, अणिमा की ओर देखते हुए ख्याल रखना अपना, मिलता हूँ। बाय। 


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कुछ दिनों बाद पुल पर, 

अणिमा पुल की रेलिंग को पकड़कर खड़ी है। उसने आज सलवार कुर्ता पहना है । उसके बाल और दुपट्टा हवा में लहरा रहे हैं वह समुद्र की लहरों की खूबसूरती को देखते हुए गाना गा रही है "मुझे तो तेरी लत लग गई लग गई" । 


पीछे से एकदम खामोशी से अतुल आता है और साथ में गाने लग जाता है," लत यह गलत लग गई" । 


 दोनों एक दूसरे को देख कर खिलखिला कर हँसते है। अतुल पूछता है, "यह क्यों आजकल तुमने रोज आना शुरू कर दिया है ? मालूम है यह मेरा एकांत स्थल था। यहाँ बैठकर मुझे खुद से बातें करना अच्छा लगता था"। 


अणिमा थोड़ा उदास होकर कहती है, "तो तुम्हें मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लगता ! क्या करूँ ? तुमसे बातें करने की आदत जो पड़ गई है । घर पर मन ही नहीं लगता, तो आ जाती हूँ। सच में अगर तुम्हें मुझसे ज्यादा खुद से बातें करना अच्छा लगता है तो ठीक है कल से नहीं आऊंगी" ।


 अतुल सकपकाते हुए,"अरे ऐसा नहीं है। मैं तो यह बता रहा था तुम्हें कि पहले यह मेरा एकांत स्थल था"। 


अणिमा उसकी ओर घूर कर देखती है और अतुल खिलखिला कर हंस देता है। फिर धीरे से गुनगुनाता है, "तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है" । 


अणिमा भी साथ में गुनगुनाती है, " जहां भी जाऊं यह लगता है तुम्हारी महफ़िल हैं। तेरे बग़ैर जहां में कोई कमी सी थी भटक रही थी जवानी अंधेरी राहों में, पनाह दिल को मिली आ के तेरी ..... में" !


दोनों ही गाते गाते अचकचा कर खामोश हो जाते हैं । अतुल अणिमा को देखता है तेज हवा से उसके बाल उड़ रहे हैं । आज उसमें जींस पैंट की जगह सलवार कुर्ता डाल रखा है । अंधेरे में अभ्यस्त आंखें देख पा रही हैं, उसने छोटी सी बिंदी भी लगाई है । वह उसे अपलक देखता है । 


तब से अणिमा अपने पर्स से चॉकलेट निकालकर खुशी से चहकते हुए, "लो चाकलेट खाओं । मुँह मीठा करों" । 


अतुल चाकलेट खाते हुए पूछता हैै, "क्यों क्या तेरी शादी पक्की हो गयी" ?


 अणिमा अतुल को मारते हुए, "शादी तो तुझसे ही करूँगी । डफर आज मेरा बारहवी का रिजल्ट आ गया। मैं बहुत अच्छे नंबर से पास हो गई हूँ। मम्मी पापा मुझे पढ़ने के लिए दिल्ली भेज रहे हैं मासी के पास। छुट्टियों में ही शायद आ पाऊंगी और अगर मम्मी पापा छुट्टी में वहां पर आ गए तो छुट्टियों में भी नहीं आ पाऊंगी। मैं तुझे फोन करूंगी। अपना फोन नंबर मत बदलना । जैसा तुमने बोला था ना मैं जिंदगी में कुछ बनने की कोशिश करूंगी । बहुत बड़ा कुछ...। चल बाय" । पहली बार अणिमा अतुल के गले लगती है। "मैं तुम्हें हमेशा याद रखूंगी । तुम मुझे भूल मत जाना"। 


अतुल मुस्कुराते हुए, "तुम जैसी कार्टून कहीं भूलने की चीज है। चल अपना ख्याल रखना"। 


 चार साल बीत गए । अणिमा का बी.ए. पूरा हो गया। वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी। एक दिन उसने खुशी से चीखते हुए अतुल को बताया, "अतुल मैंने प्रतियोगी परीक्षाओं के तीनों पायदान पार कर लिए है। मैं आईएस ऑफिसर बन गयी"। 


छुपी रुस्तम ! अरे बहुत-बहुत बधाई ! तुम्हे। तो फिर पार्टी वार्टी कब दोगी ? कब आ रही हो ? पिछले दो साल से नहीं आई हो"। 


हाँ तुम्हारे कहने पर मैंने अपने को पढ़ाई में पूरी तरह से झोक दिया था । देखो ना फायदा भी हुआ ना। मैं पहली बार में ही आईएस बन गई । अतुल तुम भी तैयारी करो, तुम भी बन सकते हो" । 


"ना बाबा ! यह पढ़ाई मेरे बस की नहीं है। तुम बन गई ना, बस बहुत है"। 


"चल अतुल शायद अब कुछ महीनों तक फोन नहीं कर पाऊँगी । जॉइनिंग, ट्रेनिंग इन सब में बिजी रहूँगी। समय मिलते ही फोन करूंगी । चल अपना ख्याल रखना। बाय अपना ख्याल रखना"। 


बात खत्म करके अतुल फुटपाथ से उठकर पुल की रेलिंग के पास आकर खड़ा होता है । थोड़ी देर फोन को उलट पलट कर देखता है । कुछ सोचता है। फोन को चूमता है फिर अपना फोन उठाकर पानी में फेंक देता है और बोलता है, "अणिमा तुम खूब तरक्की करो । तुमने अपनी मंजिल पा ली है । अब तुम्हारी जिंदगी में मेरी ना तो जरूरत है ना ही जगह I वैसे भी मेरा साथ तुम्हारी पद प्रतिष्ठा को धूमिल ही करेगा। विदा हमेशा के लिए। अब हम कभी नहीं मिलेगें। हमारे मिलने का दो ही जरिया थे एक फोन वो मैंने फेंक दिया, दूसरा यहाँ पर आकर बैठना । अब मैं कभी यहाँ नहीं आऊँगा"। 

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एक दिन अचानक (महिने, दिनों, सालों का हिसाब नहीं रखा है। आप पाठक जितना चाहे सोचने के लिए स्वतंत्र है) अतुल के घर पर दरवाजे की घंटी बजने पर किचन से अतुल की मम्मी की आवाज आई, "देखो तो दरवाजे पर कौन है" ? 


"मम्मी मैं असाइनमेंट बना रही हूँ" । 


"मम्मी मैं मैच देख रहा हूँ। अतुल तू देख ना"।  


"क्या मम्मी ! हर बार मैं ही ! छोटा हूँ तो सब दादागिरी करते हैं" । 


" हाँ तू मेरा राजा बेटा जो है" । 


 "मम्मी .... "


"अच्छा रुक मैं देखती हूँ" । 

 तबसे दरवाजे की घंटी वापस से बजती है । अतुल की मम्मी बड़बड़ाते हुए, "हे भगवान ! कौन है जो घंटी पर घंटी बजाए जा रहा है जैसे बाहर खड़ा भीग रहा हो" । 


दरवाजा खोलने पर बाहर एक खूबसूरत सी प्यारी सी लड़की खड़ी है। वह पूछती है, "आँटी अतुल है क्या" ?


 अतुल की मम्मी वहीं से अतुल को पुकारते हुए, "अरे अतुल, देख तेरी वो पुल वाली दोस्त आई है" । 


 वह लड़की आश्चर्य से, "आँटी आपने मुझे पहचाना कैसे" ? 


"तुम अणिमा ही हो ना ? वह क्या है ना अतुल के सारे दोस्तों से मैं मिल चुकी हूँ। इसलिए तुम अणिमा ही हो सकती हो"।  


अणिमा अतुल की मम्मी के गले लगते हुए, "ओह वाओ ! आँटी यू आर ग्रेट । वैसे यह जानकर ज्यादा अच्छा लगा कि मैं सही घर में आ गई"। 


"आओ, अंदर आओ" । 


तब से अतुल उठकर आ जाता है और पूछता है, "तुझे घर का पता कैसे मालूम चला" ?


 "आँटी इस डफर को बोल दो, मुझसे बात ना करें । पिछले कितने महीनों से मैं इसे फोन पर फोन लगा रही हूँ"। 


"हाँ तो मेरा फोन खो गया था और सारे नंबर तो फोन में हीं थे", अतुल उससे नज़रे चुराते हुए बोलता है। 


"हाँ हाँ बिल्कुल और तुम्हें तो मेरा घर भी नहीं मालूम है कि घर जाकर मेरा नंबर मांग लेते । वैसे मैंने सुना है कि हम फोन खो जाने पर अपने पुराने नंबर के लिए अप्लाई कर सकते हैं । अब तुम्हारा झूठ बोलकर हो गया हो तो क्या मुझे बताओगे कि तुम मुझसे बात क्यों नहीं करना चाहते हो" ? 


"मम्मी इस पागल को बोल दो इसने आपसे कहा ना कि मैं इस से बात ना करूं" । 


अणिमा आश्चर्य से कभी अतुल को कभी उसकी मम्मी को देखती हुई, "आँटी मैंने कब कहा" ? .

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 अतुल की मम्मी मुस्कुराकर अतुल को चपत मारते हुए, "बदमाश पहले उसे अंदर बुला कर बैठा" । फिर आणिमा की ओर देखकर, अभी तो कहा था मुझसे, कहा था ना । 


ओह हाँ ना सॉरी आँटी, पर वो तो अभी के लिए कहा था । 


"अच्छा वैसे तुम अंदर आओ पहले"| 


"आँटी अगर आप इजाजत दें तो मैं इसे लेने आई थी" । 


" हॉं हॉं बाद में ले जाना । अभी अंदर आओ" । अंदर आकर अणिमा अतुल के भाई व दीदी से हेलो बोलती है और वहीं सोफे पर बैठ जाती हैं। वहीं दूसरे सोफे पर बैठते हुए अतुल पूछता है, "यह बताओ तुम्हें मेरे घर का पता कैसे चला" ? 


"मिस्टर ! तुम भूल रहे हो तुम ऑफिसर से बात कर रहे हो । तुम्हारा नंबर मेरे पास था, तो तुम्हारे नंबर से लिंक कागजात से तुम्हारा पता मिल गया" । 


"अरे हाँ! बधाई हो ऑफिसर साहिबा ! वैसे आप खाली हाथ आ गयी। मिठाई तो लेकर आनी चाहिए थी" । 


अतुल की मम्मी प्लेट में कुछ मिठाई लेकर आते हुए, "कोई बात नहीं । उसने मेहनत की, मुँह मीठा मैं करवा देती हूँ"। 


अणिमा मिठाई उठाकर खाते हुए ओह आँटी आप कितनी अच्छी हो। चलो अभी मैं चलती हूँ।(अतुल को देखते हुए) तुम रात को पुल पर आ रहे हो कि मुझे लेने आना पड़ेगा" ?


"देखता हूँ"। 


"क्या देखते हो ? मतलब मैं लेने आऊं" ?  


"नहीं मेरी माँ ! मैं पहुंच जाऊंगा"।  


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 रात को पुल पर, दोनों फुटपाथ पर बैठे हैं । अणिमा ने पूछा, तुमने पुल पर आना क्यों छोड़ दिया"? 


"नहीं छोड़ा नहीं है । आता हूँ ना", अतुल ने आँखें चुराते हुए जवाब दिया । 


"देखो झूठ मत बोलो । पिछले कितने महीनों से मैं जितनी बार भी आई, हर बार तुम्हें मिलने के लिए पुल पर आयीं पर तुम नहीं मिले । हर बार तुम्हारा ना मिलना इत्तेफाक तो नहीं हो सकता। फिर तेरा फोन भी स्विच ऑफ बता रहा था । बता ना क्या हुआ" ?


 अतुल उठ कर खड़े होकर रेलिंग के पास जाकर नीचे पानी में झाँकते हुए अपने कंधे उचका कर सिर हिलाता है । अणिमा भी उसके पास जाती है। 


" बता ना घर में किसी ने कुछ कहा ? दोस्तों से कुछ अनबन हुई ? मेरी कोई बात बुरी लगी ? 


"देख अणिमा ऐसा कुछ भी नहीं है । अब तुम बड़ी ऑफिसर हो गई हो । समाज में तुम्हारा नाम है, रुतबा है । मुझ जैसे लोगों से तुम्हारा मिलना जुलना ठीक नहीं । आखिर दोस्ती भी बराबर वालों से ही की जाती है । और मैं तो तुम्हारी दोस्ती तो क्या तुम्हारे समाज के लायक भी नहीं | तुम इतनी बड़ी ऑफिसर हो, तुम्हें इतने सारे काम करने हैं । कल को तुम्हारी एक अच्छे से लड़के से शादी हो जाएगी" । 


 "तुम ऐसा सोचते हो ? मेरे बारे में, मेरी दोस्ती के बारे में । मालुम है अब जो कोई भी मुझसे शादी करेगा वह मेरी पद प्रतिष्ठा देखकर शादी करेगा मेरी कमी के साथ मुझको अपनाने के लिए नहीं" । 


"हाँ तो अच्छी बात है ना । तेरा सपना, तेरी इच्छाएं सब पूरी होंगी । अब तुझे किसी भी विधुर से शादी नहीं करनी पड़ेगी"। 


"पर मुझे तुमसे शादी करनी हो तो.... "


 "पागल हो गई है क्या ? तुझे सब मालूम है फिर भी पागलों जैसी बातें करती है" । 


"पागल जैसी नहीं सोच विचार कर । एक स्त्री एक पुरुष से क्या चाहती है ? संबल ना, मानसिक संबल और वह मानसिक संबंल मुझे हमेशा तुमसे मिला है आज तक"। 


"पर तुम्हारे कुवाँरे मन के सपने, तुम्हारी आशाएं इच्छाएँ! वह कैसे पूरे होंगे मुझसे शादी करके।


 "अरे डफर मेरे सपने तो तेरे साथ ही पूरे होंगे । देख तुम्हारी शादी भी नहीं हुई है। मैं अपने सारे अरमान सजा लूँगी" । 


"तुझे सब मालूम है मेरे बारे में | मैं कुछ करता भी नहीं हूँ। क्या बेकार बात कर रहीं है"। 


"अच्छा यह फोटो देख कर बता कैसी है" ? 


"यह तो कोई घर है ना । इतने सारे बच्चे , ओह क्या कोई अनाथ . . . . "। 


अणिमा अतुल के होठों पर अपना हाथ रखते हुए " अनाथ नहीं यह मेरे बच्चे हैं । सारे मेरे बच्चे हैं। यह मेरा घर है । तो बोलो बनोगे मेरे बच्चों के पापा ? मिस्टर ब्लागर आधे अधूरे ?


अतुल आश्चर्य से, "तुम्हें कैसे मालूम कि मैं मैं मैं म म . . . . . "।


 "देखा फिर से बन गया ना बकरी । अरे मैंने पढ़ा तो उसकी बातें, उसके विचार बहुत जाने पहचाने लगे । फिर तुम्हारी कहानियाँ, लगा जैसे मेरी तुम्हारी ही है । आधे तुम आधी मैं, आधा प्लस आधा एक, अब मिलकर उनका नया अंत लिखेंगे" । 


"अणिमा तुम समझने की कोशिश करो । मैं तुम्हें वह नहीं दे पाऊंगा जो एक स्त्री चाहती है । तुम क्यों मेरा मजाक बना रही हो"? 


देखो अतुल अगर शारीरिक सुख ही सब कुछ होता तो तलाक नहीं होते । सुख मानसिक स्तर पर मिलना चाहिए । मीरा हो या राधा या उर्मिला यह मानसिक संतुष्टि पा गए थे । शारीरिक संतुष्टि ही सब कुछ नहीं होती है" । 

"सब कुछ नहीं होती है पर जरूरत तो होती है ना"। 


शरारत से हंसते हुए एक आँख दबाकर अणिमा बोलती है, "बाबू मोशाय उसके लिए बहुत सारे विकल्प है पर मानसिक संतुष्टि का विकल्प नहीं है। बाबूमोशाय मेरे बच्चों के पापा बनना स्वीकार कीजिए | हमारा यह घर और बच्चों को संभालना आपको ही है और आपकी तरह ही अच्छा इंसान बनाना है। 



दोनों के परिवार की रजामंदी से अगले महीने अतुल और अणिमा की शादी है । आप सब शादी में आशीर्वाद देने के लिए जरूर आइएगा । 



मुझे ऑर्थर ऑफ द वीक के लिए नामांकित किया गया है। मेरे  लिए clap ,👏 कर के  मुझे प्रोत्साहित कीजिए 🙏🙏🙏🙏🙏


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