Alok Singh

Drama

5.0  

Alok Singh

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चाय संग रिश्ते भाग २

चाय संग रिश्ते भाग २

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उस चाय से एक अलग सी ही खुशबु आरही थी शायद थोड़ी अनजानी सी मगर कुछ पहचानी सी।वेटर तो चाय का प्याला मेज पर रखकर चला गया था पर चाय से उठ रही महक ध्रुव को किसी और ही दुनिया में ले जाने को उतावली थी.

पिछले साल की ही तो बात है दिवाली वाले दिन अमृता रमेश अंकल के साथ ही घर आयी हुयी थी माँ किचन में थी मैं बरामदें में था अमृता हाथो में एक मिठाई का डिब्बा लेकर आयी थी आते ही उसने बोला था माँ कहाँ है ? हाँ।अमृता को जन्म देने वाली माँ ४ साल पहले कैंसर से ख़त्म हो गयी थी तब से वह ध्रुव की माँ को ही माँ कहने लगी थी।

माँ किचेन में है ओके वह सीधे किचेन की तरफ दौड़ी थी।

माँ क्या कर रही हो ? कुछ नहीं बेटा।कुछ मेहमान आये हुए हैं.ध्रुव के पापा के कुछ दोस्त भी बाहर कमरे में बैठे हुए हैं तो सबके लिए चाय बना रही हूँ।

लाओ माँ आज सब लोग मेरे हाथ की चाय पिएंगे। रहने दे तू जा बाहर ध्रुव के संग गप्पे लड़ा।

अरे माँ. वो तो चाय पीते पीते गप्पे लड़ा लूँगी पर ध्रुव तो चाय पीता ही नहीं है.माँ बोली.कोई नहीं माँ मैं तो पीती हूँ और दोनों हस दिए।

अमृता ने चाय के बर्तन में आये हुए लोगो के हिसाब से दूध रखा और उसको उबालने लगी ये देख कर ध्रुव की माँ बोली ये क्या कर रही? पहले पानी चढ़ा फिर उसमे दूध डालना।ऐसे चाय न बना।कि सिर्फ तू ही पिए।

नहीं माँ इतना भरोसा रखिये आप।

तेरी मर्जी जैसी बना पर अगर शिकायत की किसी ने की चाय अच्छी नहीं बनी तो समझ लेना तू।

टेंशन न लो माँ.आप नास्ते की तैयारी करो।

दूध में पानी तो दूध देने वाला भी मिलाता है पानी में दूध थोड़े न अगर पानी में दूध मिलाओगे तो पानी की फितरत रहेगी न की दूध की।और अगर दूध में पानी मिलाओगे तो पानी भी खुद को दूध के रंग में ढाल लेगा।

किचेन में धड़धडाती हुयी अमिता आकर बोलती है।

अच्छा जी अब तू न दादी न बन।माँ बोलीचल हेल्प करा थोड़ी।

अमिता अमृता की हेल्प करने लगी।चाय की पत्ती।अदरखकाली मिर्च।लौंग।इलायची सब जैसा अमृता मांगती गयी वो पकड़ाती गयी।

आप चाय बना रही हैं? या मसाला ?  अमिता अमृता से बोलती है

अरे तुम देखो तो सही अगर आज के बाद मेरे हाथो की चाय की दीवानी न हो जाना तो बताना।

अच्छा तब तो मैं आपको यही अपने साथ ही रख लूँगीक्योंकि मैं तो वैसे ही चाय प्रेमी हूँ।अमिता हस्ते हुए बोली।

अमृता ने थोड़ा शर्म से अपनी आँखे नीचे कर ली।

जैसे जैसे चाय उबलती गयीवैसे ही चाय की पत्ती ने खुद के स्वाद और रंग को दूध और पानी के मिश्रण के हवाले करना शुरू कर दिया।और अदरक, काली मीर्च लौंग और इलायची भी थोड़ी सी अमृता के हाथो का प्यार पाकर खुद को उसके स्वाभिमान को बढ़ाने के लिए अपनी ताजगी को वाष्प में मिलाते हुए खुशुबू को किचेन के दरवाजे से बाहर तक फ़ैलाने लगी.

जैसे जैसे अमृता चम्मच के सहारे चाय को पकाती गयी।वैसे वैसे ही किचेन में उपस्तिथ माँ और अमिता तारीफों के पुल बांधने लगे

१० मिनट तक चाय पकने के बाद जैसे अमृता ने उसमे चीनी डाली वैसे चीनी ने खुद के अस्तित्व को अमृता के प्यार में मिला लिया.अब उस खुशबु से एक अजीब मगर मनमोहक मिठास वाली खुशबू आने लगी थी जो कि बाहर कमरे में बैठे रिश्तेदारों और दोस्तों की नाक तक पहुंचने लगी थी.

ध्रुव के कदम भी किचेन की तरफ खींचे चले आये न जाने ऐसा क्या था उस खुशबू में बनाते तो कई लोग इस तरह से ही होंगे चाय पर शायद अमृता के हाथों में कुछ तो जादू था।

क्या बना रही हो माँ।बहुत अच्छी महक आ रही है ?

मैं न बना रहीदेख अमृता ने चाय बनाई है।

अच्छावाह जी वाहक्या खुशबू है ? जब खुशबू ऐसी है तो स्वाद तो लाजवाब होगा।

पिएंगे आप ? अमृता ने पूछा ?

भइया चाय नहीं पीते हैं आप भूल गयी क्या ? अमिता उत्सुकता में बोली और उसकी बातों से ऐसा लग रहा थाकि ध्रुव चाय न पीकर आज कुछ अच्छा खो रहा है। 

ध्रुव की आँखों में एक लालच दिख रहा था पर वह चाय नहीं पीता है।चाय पीने से उसके सर में भारीपन होने लगता है।

अमृता की आँखों ने ध्रुव की आँखों के जज्बात समझ लिए थे।इसलिए उसने थोड़ी सी चाय बचा ली थी.बाकी चाय उसने ट्रे में लगा दी थी।

मुकेश जी लग रहा है अंदर कुछ बन रहा है बड़ी प्यारी खुशबू आरही है।

मुकेश ध्रुव के पापा का नाम है।अरे बस बैठिए देखता हूँ चाय बन गयी हो तो लाता हूँ।

जैसे ही वह किचेन की तरफ जाने को उठ खड़े हुए अमिता चाय की प्लेट लेकर आगयी.ये लीजिये आप लोग चाय पीजिये।और ज़रूर बताएं कि चाय कैसी बनी है ?

क्यों तूने बनाई है क्या? मुकेश जी बोले 

नहीं पापा मैंने नहीं बनाई.अमृता ने बनाई है? 

अमिता अमृता को अमृता के नाम सी पुकारती है.वह उसको अपनी सहेली ही समझती है

अच्छामुकेश जी बोले।

वह भाई क्या चाय हैचाय की खुशबू कितनी अच्छी है और इसका रंग भी और चाय की तरह नहीं लग रहा एक रिस्तेदार ने चाय का प्याला उठाते हुए कहा।

वह जी क्या स्वाद है चाय का एक सिप लेते हुए मुकेश के प्रिय दोस्त अभिषेक जी बोले। जैसे जैसे चाय लोगों के होठों से लगती हुयी स्वाद इन्द्रियों से संपर्क पाती उनको अलग सा खुशनुमा स्वाद का आनंद मिलता।

मजा आ गया।आज तक ऐसी चाय न पी रमेश जी आपकी लड़की के हाथों में जादू है।इतनी अच्छी चाय बनाती है.क्या कहना.

माँ भी धीरे धीरे कमरे की तरफ बढ़ती हुयी आगयी थी.उसकी तारीफ में एक दो और पुल बांधने।

अमृता कुछ चाय बची है क्या ? मुझे भी थोड़ी चाय दो न।

हाँ जी मैंने आपकी आँखे देख ली थी और उन आँखों में ये आग्रह पहले से ही मेरी आँखों ने मेरे दिमाग को बता दिया थाइसलिए थोड़ी सी बचा कर रखी थी। ये लीजिये, कप में चाय छानकर देती हुयी अमृता बोली-

ध्रुव भी चाय का प्याला लेकर अपने कमरे में चला गया था।

वैसी ही तो कुछ खुशबू लग रही है इस चाय में।

ध्रुव ने चाय के प्याले को अपने हाथों में लिया और चुस्कियों और यादों के संग हलकी हलकी सिप लेकर खत्म करके ऑफिस की तरफ चला गया।


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