"दायित्व"
"दायित्व"
आज मेरी कामवाली नहीं आई थी। 12 बज चुके थे, मैं आग-बबूला हो चुकी थी कि हमेशा हमारे घर ही सबसे लेट आती है, हम ही फालतू हैं । तुम हमारे घर इतना लेट आती हो। ऐसा किया करो, जब घर जाती हो शाम को, तब काम कर जाया करो। आधा दिन तो पूरा हो ही गया है, कोई आये तो क्या थूके ? इतने में मैंने देखा वह सुबक रही हैं, वह आगे बढ़ी और मुझ से लिपटकर फूटफूट कर रोने लगी। मैंने ऐसी क्या गोली मार दी जो तू ऐसे रो रही है?
आंटी ! और वह फिर सुबक पड़ी । मैंने कहा - सोनी क्या हुआ ? तुम रो क्यों रही हों? घर में सब ठीक तो है ना?
नहीं मम्मी की तबीयत बहुत खराब है, रात को पेट में दर्द ऐसा उठा की रात को ही एडमिट करवाना पड़ा । डाक्टर साहब कह रहे हैं कि गाल ब्लैडर में पथरी है, आपरेशन करवाना पड़ेगा उसके लिये 30,000 रुपए चाहिये आप मेरी कुछ मदद कर दो, हर महीने तनख्वाह में कटवा लूंगी ।
तेरे तो दो भाई हैं, फिर तू इतनी चिन्ता क्यों कर रही है?
मुझे पता है वो इतना जमा नहीं कर पायेंगे क्योंकि एक तो पीता है, नशे में ही पड़ा रहता है, अपने घर का खर्चा ही नहीं उठा पाता, मम्मी का क्या करेगा।
आप जानती हो महंगाई में क्या बचत हो पाती होगी। मैंने भी उसी माँ से जन्म लिया है। उसी ने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया है, मेरा भी तो कुछ दायित्व बनता है। क्या मैं अपनी मां के लिए इतना भी नहीं कर सकती ? इतना कहकर वह सुबकने लगी।
मैंने कहा - तुमने अपने पति से पूछ लिया? उसने कहा हां- उन्होंने कहा जैसी तुम्हारी मां वैसी मेरी। कुछ तुम इन्तजाम करो कुछ मैं करता हूँ ।
मैंने कहा तुम बहुत भाग्यवान हो, जो तुम्हें ऐसा पति मिला। इसके लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए। मैं सोच में पड़ गई की - काश! ससुराल वाले लड़की की भावनाओं को भी महत्व दें। जैसे लड़की को अपनाते हैं, ठीक वैसे ही उसके मायके वालों को भी अपनायें। जो लड़की शादी के बाद अपना सारा जीवन अपने पति और अपने ससुराल वालों पर न्योछावर कर देती है, उसका इतना अधिकार तो बनता है।