Shakuntla Agarwal

Tragedy

4  

Shakuntla Agarwal

Tragedy

"नासमझी"

"नासमझी"

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दरवाजे की घण्टी बजती है, जैसे ही मैं दरवाजा खोलता हूँ, 2 बच्चों के साथ एक पतली-दुबली औरत हाथ जोड़े खडी थी- बाऊ जी! आपने कामवाली बाई के लिये कहा था तो मुझे रीटा जी ने भेजा है। मैं झाडू-खटका सब करूंगी। अगर आपको मेरे बारे में तहकीकात करनी हो, तो आप रीटा मेमसाहिब से पूछ सकते हो। लगता है आप यहां नये आयें हैं।

नवीन - हां। 7-8 दिन पहले ही आयें हैं।

इतने में नन्दिनी प्रवेश करते हुये कहती है तो पगार कितनी लोगी ?

अरे, मेम साहिब मोहल्ले में पूछकर जो रेट है वो दे दीजियेगा।

नन्दिनी ने कहा - खड़ी क्यों हैं? बैठिये।

वह सोफे के पास ही जमीन पर दोनों बच्चों को बिठाकर बैठ गई।

नवीन - वैसे तो हम इस शहर से अजनबी नहीं हैं, परन्तु बहुत सालों बाद वापिस लौट कर आयें हैं। शायद हमारा दाना -पानी हमें फिर से यहां ले लाया।

बाऊ-जी पहले यहाँ कहां रहते थे? 

नवीन - क्वीन्स रोड पर।

उसने कहा - बाऊ जी, हम भी तो पहले वहीं रहते थे।

नवीन - क्या बात करती हो, वहाँ का नाम सुन लिया होगा वहां तो सब पैसे वालों के बगलें हैं।

हाँ साहिब ! नसीब का सब खेल है।

नवीन - वहाँं तो चौधरी साहिब का बगला बड़ा मशहूर था, हम उनके बगीचे से कैरियां और शहतूत छुप-छुप कर तोड़ कर खाते थे। तुम जानती हो उनको?

हाँ साहिब! मैं करम-जली उन्हीं क़ी बहु हूँ। जो आज इस हालत में आपके सामने है।

नवीन - क्य़ा? तुम दीनदयाल के बेटे की बहु हो? उनकी तो बहुत सी दाल मीले थी। उस जमाने में गाड़ी-बंगला उन्हीं के पास था। और आप इस हालत में?

हाँ साहिब, मेरे ससुर जी के देहान्त के बाद मेरे करीबी रिश्तेदारो ने मेरे पति को शराब, शबाब और जुए की लत लगा दी। वह पूरा दिन अय्याशी करता। 

देर रात पी कर घर आता, फिर मारपीट करता। उसे अपना ही होश नहीं था। कुछ कहती तो गाली-गलौज करता और चिल्लाने लगता। 

अपने बाप से लाई थी क्या साली? तुझे मेरे मामले में बोलने की कोई इजाजत नहीं, ज्यादा बोलेगी तो जबान नोच लूंगा। चुप कर ज्यादा बकबक मत कर। मैं बच्चों और इज्जत की खातिर चुप हो जाती। इनको तो कोई होश रहता नहीं था। धीरे-धीरे मेरे चाचा ससुर ने बहुत कुछ अपने नाम करवा लिया और वक्त के साथ-साथ शराब इनको पीती चली गई और फिर एक दिन (कहते हुए सिसकने लगी)। नन्दिनी उसकी पीठ सहलाने लगी।

उनके देहांत के बाद बची-खुची जमीन-जायदाद भी उसने कोरे कागज पर हस्ताक्षर करवाकर अपने नाम करवा ली। सभी अपनो, यहां तक मेरे मायके वालों ने भी मुँह फेर लिया। जो महीनो पड़े रहते थे, उन्हें हम फूटी ऑंख नहीं सुहा रहे थे। अपना और बच्चों का पेट तो पालना ही था, सो ये काम करने लगी।

भरी जवानी देख लोग ललचाई निगाह से देखते थे। मेरी इज्जत बची रही, इसी के लिए रीटा ऑंटी ने मुझे काम के साथ-साथ अपने यहाँ कमरा भी दे रखा है।जहां अपनो ने साया उठा लिया, वहां गैर अपने हो गये। 

तुम्हारी जगह फर्श पर नही अर्श पर है। मैं वायदा करता हूँ, मैं तुम्हारा खोया हुआ मान-सम्मान वापिस दिलवाकर रहूंगा। मैं जाना-माना वकील हूँ। शायद आपकी समस्या समाधान के लिए ही ईश्वर मुझे यहाँ वापिस लेकर आये हैं। बिना पढ़े किसी भी पेपर पर हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए। कोरे कागज पर तो हरगिज नहीं। कोई कितना ही करीबी क्यों ना हो, मेरा यही आग्रह है। अपने ही धोखा देते हैं, गैरों से तो हम सचेत रहते हैं। हमें अपने ही लूटते हैं, गैरों में कहां दम है। किसी ने यह सही ही कहा है - हमारी कश्ती भी वहीं डूबती है, जहां पानी कम होता है।



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