Dinesh Dubey

Inspirational

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Dinesh Dubey

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गुरु कृपा

गुरु कृपा

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सभी संत साल में एक बार देशाटन करने अवश्य निकलते थे, वह अपनी साधना से प्राप्त शक्तियों से लोगों का भला करते थे और प्रवचन कर लोगों के मन में धर्म के प्रति आस्था भी जगाते थे।, इसी प्रकार एक संत अपने एक शिष्य के साथ एक अनजान नगर में पहुंचे।

रात हो चुकी थी और वे दोनों रात्रि बिताने के लिए किसी आसरे की तलाश में थे।

उन्होंने एक घर का दरवाजा खटखटाया, वह एक धनिक का घर था और अंदर से परिवार का मुखिया निकलकर आया।

वह संकीर्ण प्रवृति का था, उसने कहा " महाराज मैं आपको अपने घर के अंदर तो नहीं ठहरा सकता लेकिन तलघर में हमारा स्टोर बना है।

आप चाहें तो वहां रात को रुक सकते हैं, लेकिन सुबह होते ही आपको चले जाना होगा।

उन्हें तो रात्रि ही गुजारनी थी, तो वह संत अपने शिष्य के साथ तलघर में ठहर गए।

वहां के कठोर फर्श पर वे सोने की तैयारी कर रहे थे कि तभी संत को दीवार में एक दरार नजर आई।

संत उस दरार के पास पहुंचे और कुछ सोचकर उसे भरने में जुट गए।

शिष्य के कारण पूछने पर संत ने कहा-"चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती हैं।

सुबह जल्दी ही उस धनिक के उठने से पहले ही वो दोनों वहां से निकल गए थे,। अगली रात वे दोनों एक गरीब किसान के घर शरण मांगने पहुंचे।

किसान और उसकी पत्नी ने प्रेमपूर्वक उनका स्वागत किया। उनका घर भी छोटा सा था।

उनके पास जो कुछ रूखा-सूखा था, वह उन्होंने उन दोनों के साथ बांटकर खाया और फिर उन्हें सोने के लिए अपना बिस्तर दे दिया।

किसान और उसकी पत्नी नीचे फर्श पर सो गए।

सवेरा होने पर संत व उनके शिष्य ने देखा कि किसान और उसकी पत्नी रो रहे थे क्योंकि उनका बैल खेत में मरा पड़ा था।

यह देखकर शिष्य ने संत से कहा " 'गुरुदेव, आपके पास तो कई सिद्धियां हैं, फिर आपने यह क्यों होने दिया?

उस धनिक के पास सब कुछ था, फिर भी आपने उसके तलघर की मरम्मत करके उसकी मदद की,

जबकि इस गरीब ने कुछ ना होने के बाद भी हमें इतना सम्मान दिया फिर भी आपने उसके बैल को मरने दिया।

संत ने उसकी ओर देखा फिर बोले " हर बात हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती हैं।

उन्होंने आगे कहा- "उस धनिक के तलघर में दरार से मैंने यह देखा कि उस दीवार के पीछे स्वर्ण का भंडार था।

चूंकि उस घर का मालिक बेहद लोभी और कृपण था, इसलिए मैंने उस दरार को बंद कर दिया, ताकि स्वर्ण भंडार उसके हाथ ना लगे।

इस किसान के घर में हम उसके बिछौने पर सोए थे।

रात्रि में इस किसान की पत्नी की मृत्यु लिखी थी और जब यमदूत उसके प्राण हरने आए तो मैंने उन्हें रोक दिया।

चूंकि वे खाली हाथ नहीं जा सकते थे, इसलिए मैंने उनसे उस किसान के पत्नी के बदले बैल के प्राण ले जाने के लिए कहा।

यह सुनकर शिष्य संत के समक्ष नतमस्तक हो गया।

ठीक इसी तरह गुरु की कृपा वह नहीं है जो हम चाहते बल्कि गुरु-कृपा तो वह है जो ईश्वर चाहते हैं।



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