जिद्दी दूल्हा
जिद्दी दूल्हा
बिहार के नक्सल प्रभावित मध्य इलाके में कलां नाम का एक गांव था। गांव काफी बड़ा था उक्त गांव की गलियां थोड़ी पतली थी उक्त पतले गलियों में ही बीचों बीच नालियां जिससे चार एवं तीन चक्के गाड़ियों को तो छोड़ ही दीजिए, मोटरसाइकिल सवार को भी आने जाने में दिक्कत होता था। लेकिन गांव के दूसरे छोर से एक सड़क जो गांव को स्थानीय बाजार से जोड़ती थी उसी रास्ते से छोटी गाड़ियाँ गांव में आ जाती थी
एक समय की बात उक्त गांव में बाबा के नाम से मशहूर सिंह साहब के यहाँ बारात आया हुआ था। जैसा कि गांव बहुत बड़ा था तो परिवार भी ज्यादा थे सो दिसम्बर के उस कड़कड़ाते ठंड के महीने में सिंह साहब के अलावा उक्त गांव में करीब और भी एक दर्जन जितना बारात आये हुए थे। गांव दक्षिण दिशा से दो भागों में था, जिसे एक नाले पे निर्मित पुल जोड़ता था। जैसे ही दूल्हे का गाड़ी पुल के पास पहुँचा गाड़ी का चक्का उसी में फंस गया।
गाड़ी का चालक करीब एक घण्टा मेहनत के बाद वो थक गया और बोला कि अब गाड़ी उससे नहीं निकलेगा। इस दौरान शादी का शुभ मुहूर्त नजदीक आ रहा था सो सभी लोग दूल्हे को बोले कि आप बाइक से या पालकी से दरवाजे तक चले लेकिन दूल्हा अपने जिद्द पे कायम था कि जब जाऊंगा तो अपने कार से ही दरवाज़े पे जाऊँगा अन्यथा नहीं दूल्हे के जिद्द सुन कर लड़की तरफ के लोगों में हड़कप मच गया क्योंकि शुभ मुर्हूत का समय भी नजदीक आ रहा था।
गांव के एक नामी कार चालक थे, सिंह साहब के बड़े लड़के लेकिन उनका पेट खराब था इसलिए वो दरवाजे पे जयमाल के तैयारी में लगे थे और बहुत ही कम समय के अंतराल पे वे दीर्घ शंका(शौच) जा रहे थे इसी बीच उनको लोगों ने सारी बात बताई और बोला कि अब आप ही को कार निकालना है। इतना सुनते ही वो चल पड़े और कार के चालक को हटा कर खुद प्रयास करने लगे लेकिन इसी बीच पेट खराब होने के वजह से बहुत ही दुर्गंध युक्त गैस(हवा) छोड़ रहे थे जिसके बदबू से करीब दस मिनट बाद ही दूल्हा गाड़ी से निकल के दूर भागे और बोले कि मैं कार से नहीं जाऊंगा, बाइक क्या मैं पैदल भी जाने को तैयार हूँ।