अभिमन्यु कुमार

Inspirational Others

4.9  

अभिमन्यु कुमार

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मैं और गुजरात की स्थानीय भाषाए

मैं और गुजरात की स्थानीय भाषाए

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मैं पिछले पांच साल पटना में रह कर स्नातक एवं स्नातकोत्तर की पढ़ाई की इस दौरान हिन्दी भी कभी-कभी बोलता था। इससे ज्यादा कुछ फर्क कभी न पड़ा क्योकि बिहार में भाषा को लेकर असमंजस के माहौल से कभी सामना ही नहीं हुआ था। किन्तु गुजरात मे तो जैसे गुजराती ही सब कुछ है और तो और मैं जिस क्षेत्र में आया वहाँ तो जैसे हर जाति की अपनी बोली है जो हिन्दी तो दूर गुजराती भी काफी देर से समझते है। लेकिन मै टीबी चैनल वाले को शुक्रगुजार हूं कि चैनल पे चलने वाले हिन्दी सीरियल एवं शो से आज की पीढ़ी हिन्दी कुछ-कुछ समझ पाते है लेकिन बोल नही पाते है। और एक चीज आपको बताना चाहूंगा कि गुजराती हिन्दी से काफी हद तक मिलती है। परन्तु कुछ लोगो की गुजराती तो इतनी तेज़ है की सारी बाते आप के ऊपर से ही चली जाएगी और आप सिर्फ उनका चेहरा ही देखते रह जाओगे। तो आप सोचो जातिये भाषाओ का क्या ओ तो आपके पास भी न फटकने वाली है। क्योकि आप को कुछ समझ मे तो आने वाला है नही और अगर गलती से आप ने कुछ समझने की कोशिश की तो अर्थ का अनर्थ कर बैठेंगे तो ऐसी परस्तिथि मे दो ही बाते हो सकती है या तो आप गुजराती एव जाति आधारित भाषा सीखो या फिर उनसे हिंदी बोलने के लिए विनती करो दोनों ही तरीके थोड़े से मुश्किल है। लेकिन मेरी कोशिश अभी जारी है पता नही कितना समय लगेगा। इसी कारण लोग मुझे यहाँ #हिन्दी_वाले_साहब से बुलाते है। ये तो तय है कि बोलना तो ठीक है मै कम से कम गुजराती एवं इस क्षेत्र के जातीय भाषाओ को अच्छी तरह से समझने जरुर लग जाऊंगा। हालाँकि मुझे यहाँ 22 दिवस (3 महीने हो चुके है गुजरात में रहते) हो चुके है लेकिन फिर भी रोज कुछ न कुछ ऐसा सुनने को मिलता है जो की पहले कभी सुना ही न हो।

मुझे शुरुआत मे तो लगा जैसे न जाने किस अजनबी दुनिया मे आ गया हु, क्योकि आस पास के लोग बाते तो बहुत सारी करते लेकिंन समझ मे ही नहीं आता की तारीफ कर रहे है या फिर मजाक बना रहे है। ये भी नही पता होता।कुछ दिन रहने के पश्चात् एक दिवस मन में ख्याल क्या जैसे हमे घमण्ड हो गया था कि हम तो गुजराती तो क्या जातीय भाषा को भी अच्छी तरह से समझने लगे है लेकिन घमण्ड उसी दिन शाम के समय बच्चे के घर पे जा कर टुटा जहा बच्चे के घर पे उसके मम्मी के अलावा कोई नही था और वे हमारी ओर मुखातिब हो कर one to one यानि भाषा रूपी गेंद फेंकने लगे मैं भी बल्ला उठा कर खेलने की कोशिश किया किन्तु गेंद रूपी भाषाई शब्द काफी ऊपर से निकल रहा था लेकिन मैंने भी गेंदबाज को ये महसूस नही होने देने के कोशिश में था कि बल्लेबाज आत्मविश्वास खो रहा है यानि आपकी भाषा नही समझ पा रहा है। और इस तरह वार्ता करीब पंद्रह मिनट चला और परिणाम कुछ नही निकला। उसी दिवस रात्रि में सोते वक्त फिर से मन में ख्याल आया लेकिन इस बार नकारात्मक था की छोड़ो यार कहा कम्युनिटी इमर्शन के चक्कर मे पड़ गए है। जिस तेईस वर्ष के जीवन में सिर्फ सूरत और गुजरात सुना था वह भी कभी-कभार अब तो सिर्फ #उमरपाड़ा #कामरेज #चौरासी #ओलपाड #महुवा #बारदोली #मांडवी #मांगरोल #पलसाना ही करते रहते है अपनों का तो…… बातो को आगे बढ़ाते हुए।

लेकिन छोड़ भी नही सकता था क्योकि काम और कुछ नया सीखने के लिए बात तो करनी ही पड़ेगी ऐसा नही है कि लोग सिर्फ गुजराती और जातीय भाषाओ मे ही बोलते है मुझसे अक्सर हिंदी मे भी बात कर लेते है सिर्फ उतनी ही जितनी जरुरी होती फिर साथ वालो से गुजराती या जातीय भाषाओ मे शुरू हो जाते तो मेरा काम जैसे तैसे भी तो चल जाता था लेकिन फिर मैंने गुजराती/जातीय भाषा सीखना शुरू कर ही दिया और साथ वालो से सबसे पहले खाने के बारे मे कुछ-कुछ शब्द सीखे जैसे कि खाना के लिए के लिए कैसे पूछते है, खाना बना है या नही, साथ वालो ने खाना खा लिया क्या और भी बहुत कुछ सोच सुनकर तो ठीक है पढकर भी देख लेते है तो गुजराती किताब को पढ़ने की कोशिश की तो सिर्फ पढ़ते ही जा रहा था कुछ समझ नही पा रहा था तो दो पेज पढ़ी और किताब बंद करके के रख दी।

मुसीबत तो यहा भी कम नही पड़ी जिससे गुजराती या जातीय भाषा के शब्द पूछता तो वो कभी कभी ऐसे शब्द सिखा देते कि आप सामान्य तौर पर उपयोग नहीं कर सकते और तो और वो ये भी नही बताते कि ये कहा बोलना है और कहा नही, तो दो-तीन बार ऐसा ही हुआ गलत समय पे गलत शब्द बोल दिया लेकिन सबको पता था, तो बात हँसी मजाक मे टल गयी।

मैं बारिश का मौसम हूँ, तुझे एक दिन भाऊँगा।

हो, दो दिन देके खुशियाँ हश्र तक ले आऊँगा।

मैं बारिश का मौसम हूँ, मेरा एतबार ना करना।

कुछ भी हो जाए यारा, मुझे तू प्यार ना करना।

ये बात जरुर है कि जैसे जैसे गुजराती/जातीय भाषा समझ मे आती जा रही है अच्छा लग रहा है एक और नई भाषा सीखते हुए। इसलिए पहले सीखते है फिर सिखाएंगे।


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